श्री रामचरितमानस
श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों । तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
विषय सूची
इस खंड में सम्पूर्ण रामचरित मानस का संकलन किया गया है। यदि आप प्रतिदिन इस खंड के एक – एक लेख को भी पढ़ते जाएंगे एवं साथ में इसके वीडियो को देखेंगे तो कुछ ही समय में आप सम्पूर्ण राम चरित मानस का पठन श्रवण कर लेंगे।
श्री रामचरितमानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। सभी हिन्दू धर्मावलम्बियों के लिए श्री रामचरितमानस सबसे पवित्र धर्म ग्रन्थ है। ऐसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखा था । इस ग्रन्थ को (हिंदी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है।
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मूल रामायण वाल्मीकि जी द्वारा, संस्कृत में रचा गया था । गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसे प्रचलित अवधि भाषा में लिखा गया था । तुलसीदास जी द्वारा लिखे जाने के कारन ही इसे ‘तुलसी रामायण’ या ‘तुलसीकृत रामायण’ भी कहा जाता है। वाल्मीकि रामायण और श्री राम चरित मानस में कुछ अंतर भी है ।
श्री रामचरित मानस के नायक श्रीराम हैं जिनको एक मर्यादा पुरोषोत्तम के रूप में दर्शाया गया है जोकि अखिल ब्रह्माण्ड के स्वामी श्रीहरि नारायण भगवान के अवतार है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक आदर्श चरित्र मानव के रूप में दिखाया गया है। जो सम्पूर्ण मानव समाज ये सिखाता है जीवन को किस प्रकार जिया जाय भले ही उसमे कितने भी विघ्न हों । तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
1क्रमांक – १, सम्पूर्ण राम चरित मानस पाठ –
आप प्रतिदिन इस खंड के एक एक लेख को भी पढ़ते जाएंगे एवं साथ में इसके वीडियो को देखेंगे तो कुछ ही समय में आप सम्पूर्ण राम चरित मानस का पठन श्रवण कर लेंगे।
आज तुलसीदास जी के रामचरित मानस के बारे में।
रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने श्री रामचन्द्र के निर्मल एवं विशद चरित्र का वर्णन किया है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत रामायण को रामचरितमानस का आधार माना जाता है। यद्यपि रामायण और श्रीरामचरितमानस दोनों में ही राम के चरित्र का वर्णन है परंतु दोनों ही महाकाव्यों के रचने वाले कवियों की वर्णन शैली में उल्लेखनीय अन्तर है। जहाँ वाल्मीकि ने रामायण में राम को केवल एक सांसारिक व्यक्ति के रूप में दर्शाया है वहीं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम को भगवान विष्णु का अवतार माना है।
प्रचलित अवधि भाषा में रचे जाने के कारन रामचरितमानस की लोकप्रियता अद्वितीय है। उत्तर भारत में ‘रामायण’ के रूप में बहुत से लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। शरद नवरात्रि में इसके सुन्दर काण्ड का पाठ पूरे नौ दिन किया जाता है।
श्रीरामचरितमानस १५वीं शताब्दी के कवि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया महाकाव्य है, जैसा कि स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरित मानस के बालकाण्ड में लिखा है कि उन्होंने रामचरित मानस की रचना का आरम्भ अयोध्या में विक्रम संवत १६३१ (१५७४ ईस्वी) को रामनवमी के दिन (मंगलवार) किया था। गीताप्रेस गोरखपुर के संपादक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार के अनुसार रामचरितमानस को लिखने में गोस्वामी तुलसीदास जी को २ वर्ष ७ माह २६ दिन का समय लगा था और उन्होंने इसे संवत् १६३३ (१५७६ ईस्वी) के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम विवाह के दिन पूर्ण किया था।
गोस्वामी जी ने श्रीरामचरितमानस को सात काण्डों में विभक्त किया है।
इन सात काण्डों के नाम हैं –
- बालकाण्ड
- अयोध्याकाण्ड
- अरण्यकाण्ड
- किष्किन्धाकाण्ड
- सुन्दरकाण्ड
- लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और
- उत्तरकाण्ड
छन्दों की संख्या के अनुसार बालकाण्ड और किष्किन्धाकाण्ड क्रमशः सबसे बड़े और छोटे काण्ड हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में अवधी के अलंकारों का बहुत सुन्दर प्रयोग किया है विशेषकर अनुप्रास अलंकार का। यह दोहों, चौपाइयों, सोरठों तथा छंद में लिखा गया है।
प्रत्येक कांड में श्लोक, दोहा, सोरठा, छंद एवं चौपाइयों की संख्या
बाल काण्ड: श्लोक- 7, दोहा- 341, सोरठा- 25, छंद- 39, चौपाई- 358
अयोध्या काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 314, सोरठा- 13, छंद- 13, चौपाई- 326
अरण्य काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 41, सोरठा- 6, छंद- 9, चौपाई- 44
किष्किंधा काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 30, सोरठा- 1, छंद- 2, चौपाई- 30
सुन्दर काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 59, सोरठा- 1, छंद- 3, चौपाई- 60
लंका काण्ड: श्लोक- 1, दोहा- 118, सोरठा- 4, छंद- 38, चौपाई- 117
उत्तर काण्ड: श्लोक- 4, दोहा- 126, सोरठा- 5, छंद- 14, चौपाई- 125
राम चरित मानस के प्रसंगो की सूचि
बाल काण्ड
- मंगलाचरण
- गुरु वंदना
- ब्राह्मण-संत वंदना
- खल वंदना
- संत-असंत वंदना
- रामरूप से जीवमात्र की वंदना
- तुलसीदासजी की दीनता और राम भक्तिमयी कविता की महिमा
- कवि वंदना
- वाल्मीकि, वेद, ब्रह्मा, देवता, शिव, पार्वती आदि की वंदना
- श्री सीताराम-धाम-परिकर वंदना
- श्री नाम वंदना और नाम महिमा
- श्री रामगुण और श्री रामचरित् की महिमा
- मानस निर्माण की तिथि
- मानस का रूपक और माहात्म्य
- याज्ञवल्क्य-भरद्वाज संवाद तथा प्रयाग माहात्म्य
- सती का भ्रम, श्री रामजी का ऐश्वर्य और सती का खेद
- शिवजी द्वारा सती का त्याग, शिवजी की समाधि
- सती का दक्ष यज्ञ में जाना
- पति के अपमान से दुःखी होकर सती का योगाग्नि से जल जाना, दक्ष यज्ञ विध्वंस
- पार्वती का जन्म और तपस्या
- श्री रामजी का शिवजी से विवाह के लिए अनुरोध
- सप्तर्षियों की परीक्षा में पार्वतीजी का महत्व
- कामदेव का देवकार्य के लिए जाना और भस्म होना
- रति को वरदान
- देवताओं का शिवजी से ब्याह के लिए प्रार्थना करना, सप्तर्षियों का पार्वती के पास जाना
- शिवजी की विचित्र बारात और विवाह की तैयारी
- शिवजी का विवाह
- शिव-पार्वती संवाद
- अवतार के हेतु
- नारद का अभिमान और माया का प्रभाव
- विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों को तथा भगवान् को शाप और नारद का मोहभंग
- मनु-शतरूपा तप एवं वरदान
- प्रतापभानु की कथा
- रावणादिका जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचार
- पृथ्वी और देवतादि की करुण पुकार
- भगवान् का वरदान
- राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, रानियों का गर्भवती होना
- श्री भगवान् का प्राकट्य और बाललीला का आनंद
- विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना, ताड़का वध
- विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा
- अहल्या उद्धार
- श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर में प्रवेश
- श्री राम-लक्ष्मण को देखकर जनकजी की प्रेम मुग्धता
- श्री राम-लक्ष्मण का जनकपुर निरीक्षण
- पुष्पवाटिका-निरीक्षण, सीताजी का प्रथम दर्शन, श्री सीता-रामजी का परस्पर दर्शन
- श्री सीताजी का पार्वती पूजन एवं वरदान प्राप्ति तथा राम-लक्ष्मण संवाद
- श्री राम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश
- श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश
- बंदीजनों द्वारा जनकप्रतिज्ञा की घोषणा, राजाओं से धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी
- श्री लक्ष्मणजी का क्रोध
- धनुषभंग
- जयमाला पहनाना, परशुराम का आगमन व क्रोध
- श्री राम-लक्ष्मण और परशुराम-संवाद
- दशरथजी के पास जनकजी का दूत भेजना, अयोध्या से बारात का प्रस्थान
- बारात का जनकपुर में आना और स्वागतादि
- श्री सीता-राम विवाह, विदाई
- बारात का अयोध्या लौटना और अयोध्या में आनंद
- श्री रामचरित् सुनने-गाने की महिमा
अयोध्या काण्ड
- मंगलाचरण
- राम राज्याभिषेक की तैयारी, देवताओं की व्याकुलता तथा सरस्वती से उनकी प्रार्थना
- सरस्वती का मन्थरा की बुद्धि फेरना, कैकेयी-मन्थरा संवाद, प्रजा में खुशी
- कैकेयी का कोपभवन में जाना
- दशरथ-कैकेयी संवाद और दशरथ शोक, सुमन्त्र का महल में जाना और वहाँ से लौटकर श्री रामजी को महल में भेजना
- श्री राम-कैकेयी संवाद
- श्री राम-दशरथ संवाद, अवधवासियों का विषाद, कैकेयी को समझाना
- श्री राम-कौसल्या संवाद
- श्री सीता-राम संवाद
- श्री राम-कौसल्या-सीता संवाद
- श्री राम-लक्ष्मण संवाद
- श्री लक्ष्मण-सुमित्रा संवाद
- श्री रामजी, लक्ष्मणजी, सीताजी का महाराज दशरथ के पास विदा माँगने जाना, दशरथजी का सीताजी को समझाना
- श्री राम-सीता-लक्ष्मण का वन गमन और नगर निवासियों को सोए छोड़कर आगे बढ़ना
- श्री राम का श्रृंगवेरपुर पहुँचना, निषाद के द्वारा सेवा
- लक्ष्मण-निषाद संवाद, श्री राम-सीता से सुमन्त्र का संवाद, सुमंत्र का लौटना
- केवट का प्रेम और गंगा पार जाना
- प्रयाग पहुँचना, भरद्वाज संवाद, यमुनातीर निवासियों का प्रेम
- तापस प्रकरण
- यमुना को प्रणाम, वनवासियों का प्रेम
- श्री राम-वाल्मीकि संवाद
- चित्रकूट में निवास, कोल-भीलों के द्वारा सेवा
- सुमन्त्र का अयोध्या को लौटना और सर्वत्र शोक देखना
- दशरथ-सुमन्त्र संवाद, दशरथ मरण
- मुनि वशिष्ठ का भरतजी को बुलाने के लिए दूत भेजना
- श्री भरत-शत्रुघ्न का आगमन और शोक
- भरत-कौसल्या संवाद और दशरथजी की अन्त्येष्टि क्रिया
- वशिष्ठ-भरत संवाद, श्री रामजी को लाने के लिए चित्रकूट जाने की तैयारी
- अयोध्यावासियों सहित श्री भरत-शत्रुघ्न आदि का वनगमन
- निषाद की शंका और सावधानी
- भरत-निषाद मिलन और संवाद और भरतजी का तथा नगरवासियों का प्रेम
- भरतजी का प्रयाग जाना और भरत-भरद्वाज संवाद
- भरद्वाज द्वारा भरत का सत्कार
- इंद्र-बृहस्पति संवाद
- भरतजी चित्रकूट के मार्ग में
- श्री सीताजी का स्वप्न, श्री रामजी को कोल-किरातों द्वारा भरतजी के आगमन की सूचना, रामजी का शोक, लक्ष्मणजी का क्रोध
- श्री रामजी का लक्ष्मणजी को समझाना एवं भरतजी की महिमा कहना
- भरतजी का मन्दाकिनी स्नान, चित्रकूट में पहुँचना, भरतादि सबका परस्पर मिलाप, पिता का शोक और श्राद्ध
- वनवासियों द्वारा भरतजी की मंडली का सत्कार, कैकेयी का पश्चाताप
- श्री वशिष्ठजी का भाषण
- श्री राम-भरतादि का संवाद
- जनकजी का पहुँचना, कोल किरातादि की भेंट, सबका परस्पर मिलाप
- कौसल्या सुनयना-संवाद, श्री सीताजी का शील
- जनक-सुनयना संवाद, भरतजी की महिमा
- जनक-वशिष्ठादि संवाद, इंद्र की चिंता, सरस्वती का इंद्र को समझाना
- श्री राम-भरत संवाद
- भरतजी का तीर्थ जल स्थापन तथा चित्रकूट भ्रमण
- श्री राम-भरत-संवाद, पादुका प्रदान, भरतजी की बिदाई
- भरतजी का अयोध्या लौटना, भरतजी द्वारा पादुका की स्थापना, नन्दिग्राम में निवास और श्री भरतजी के चरित्र श्रवण की महिमा
अरण्य काण्ड
- मंगलाचरण
- जयंत की कुटिलता और फल प्राप्ति
- अत्रि मिलन एवं स्तुति
- श्री सीता-अनसूया मिलन और श्री सीताजी को अनसूयाजी का पतिव्रत धर्म कहना
- श्री रामजी का आगे प्रस्थान, विराध वध और शरभंग प्रसंग
- राक्षस वध की प्रतिज्ञा करना, सुतीक्ष्णजी का प्रेम, अगस्त्य मिलन, अगस्त्य संवाद
- राम का दंडकवन प्रवेश, जटायु मिलन, पंचवटी निवास और श्री राम-लक्ष्मण संवाद
- शूर्पणखा की कथा, शूर्पणखा का खरदूषण के पास जाना और खरदूषणादि का वध
- शूर्पणखा का रावण के निकट जाना, श्री सीताजी का अग्नि प्रवेश और माया सीता
- मारीच प्रसंग और स्वर्णमृग रूप में मारीच का मारा जाना, सीताजी द्वारा लक्ष्मण को भेजना
- श्री सीताहरण और श्री सीता विलाप
- जटायु-रावण युद्ध, अशोक वाटिका में सीताजी को रखना
- श्री रामजी का विलाप, जटायु का प्रसंग, कबन्ध उद्धार
- शबरी पर कृपा, नवधा भक्ति उपदेश और पम्पासर की ओर प्रस्थान
- नारद-राम संवाद
- संतों के लक्षण और सत्संग भजन के लिए प्रेरणा
किष्किंधा काण्ड
- मंगलाचरण
- श्री रामजी से हनुमानजी का मिलना और श्री राम-सुग्रीव की मित्रता
- सुग्रीव का दुःख सुनाना, बालि वध की प्रतिज्ञा, श्री रामजी का मित्र लक्षण वर्णन
- सुग्रीव का वैराग्य
- बालि-सुग्रीव युद्ध, बालि उद्धार, तारा का विलाप
- तारा को श्री रामजी द्वारा उपदेश और सुग्रीव का राज्याभिषेक तथा अंगद को युवराज पद
- वर्षा ऋतु वर्णन
- शरद ऋतु वर्णन
- श्री राम की सुग्रीव पर नाराजी, लक्ष्मणजी का कोप
- सुग्रीव-राम संवाद और सीताजी की खोज के लिए बंदरों का प्रस्थान
- गुफा में तपस्विनी के दर्शन, वानरों का समुद्र तट पर आना, सम्पाती से भेंट और बातचीत
- समुद्र लाँघने का परामर्श, जाम्बवन्त का हनुमान्जी को बल याद दिलाकर उत्साहित करना, श्री राम-गुण का माहात्म्य
सुन्दर काण्ड
- मंगलाचरण
- हनुमान्जी का लंका को प्रस्थान, सुरसा से भेंट, छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध
- लंका वर्णन, लंकिनी वध, लंका में प्रवेश
- हनुमान्-विभीषण संवाद
- हनुमान्जी का अशोक वाटिका में सीताजी को देखकर दुःखी होना और रावण का सीताजी को भय दिखलाना
- श्री सीता-त्रिजटा संवाद
- श्री सीता-हनुमान् संवाद
- हनुमान्जी द्वारा अशोक वाटिका विध्वंस, अक्षय कुमार वध और मेघनाद का हनुमान्जी को नागपाश में बाँधकर सभा में ले जाना
- हनुमान्-रावण संवाद
- लंकादहन
- लंका जलाने के बाद हनुमान्जी का सीताजी से विदा माँगना और चूड़ामणि पाना
- समुद्र के इस पार आना, सबका लौटना, मधुवन प्रवेश, सुग्रीव मिलन, श्री राम-हनुमान् संवाद
- श्री रामजी का वानरों की सेना के साथ चलकर समुद्र तट पर पहुँचना
- मंदोदरी-रावण संवाद
- रावण को विभीषण का समझाना और विभीषण का अपमान
- विभीषण का भगवान् श्री रामजी की शरण के लिए प्रस्थान और शरण प्राप्ति
- समुद्र पार करने के लिए विचार, रावणदूत शुक का आना और लक्ष्मणजी के पत्र को लेकर लौटना
- दूत का रावण को समझाना और लक्ष्मणजी का पत्र देना
- समुद्र पर श्री रामजी का क्रोध और समुद्र की विनती, श्री राम गुणगान की महिमा
लंका काण्ड
- मंगलाचरण
- नल-नील द्वारा पुल बाँधना, श्री रामजी द्वारा श्री रामेश्वर की स्थापना
- श्री रामजी का सेना सहित समुद्र पार उतरना, सुबेल पर्वत पर निवास, रावण की व्याकुलता
- रावण को मन्दोदरी का समझाना, रावण-प्रहस्त संवाद
- सुबेल पर श्री रामजी की झाँकी और चंद्रोदय वर्णन
- श्री रामजी के बाण से रावण के मुकुट-छत्रादि का गिरना
- मन्दोदरी का फिर रावण को समझाना और श्री राम की महिमा कहना
- अंगदजी का लंका जाना और रावण की सभा में अंगद-रावण संवाद
- रावण को पुनः मन्दोदरी का समझाना
- अंगद-राम संवाद, युद्ध की तैयारी
- युद्धारम्भ
- माल्यवान का रावण को समझाना
- लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, लक्ष्मणजी को शक्ति लगना
- हनुमानजी का सुषेण वैद्य को लाना एवं संजीवनी के लिए जाना, कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार, कालनेमि उद्धार
- भरतजी के बाण से हनुमान् का मूर्च्छित होना, भरत-हनुमान् संवाद
- श्री रामजी की प्रलापलीला, हनुमान्जी का लौटना, लक्ष्मणजी का उठ बैठना
- रावण का कुम्भकर्ण को जगाना, कुम्भकर्ण का रावण को उपदेश और विभीषण-कुम्भकर्ण संवाद
- कुम्भकर्ण युद्ध और उसकी परमगति
- मेघनाद का युद्ध, रामजी का लीला से नागपाश में बँधना
- मेघनाद यज्ञ विध्वंस, युद्ध और मेघनाद उद्धार
- रावण का युद्ध के लिए प्रस्थान और श्री रामजी का विजयरथ तथा वानर-राक्षसों का युद्ध
- लक्ष्मण-रावण युद्ध
- रावण मूर्च्छा, रावण यज्ञ विध्वंस, राम-रावण युद्ध
- इंद्र का श्री रामजी के लिए रथ भेजना, राम-रावण युद्ध
- रावण का विभीषण पर शक्ति छोड़ना, रामजी का शक्ति को अपने ऊपर लेना, विभीषण-रावण युद्ध
- रावण-हनुमान् युद्ध, रावण का माया रचना, रामजी द्वारा माया नाश
- घोरयुद्ध, रावण की मूर्च्छा
- त्रिजटा-सीता संवाद
- रावण का मूर्च्छा टूटना, राम-रावण युद्ध, रावण वध, सर्वत्र जयध्वनि
- मन्दोदरी-विलाप, रावण की अन्त्येष्टि क्रिया
- विभीषण का राज्याभिषेक
- हनुमान्जी का सीताजी को कुशल सुनाना, सीताजी का आगमन और अग्नि परीक्षा
- देवताओं की स्तुति, इंद्र की अमृत वर्षा
- विभीषण की प्रार्थना, श्री रामजी के द्वारा भरतजी की प्रेमदशा का वर्णन, शीघ्र अयोध्या पहुँचने का अनुरोध
- विभीषण का वस्त्राभूषण बरसाना और वानर-भालुओं का उन्हें पहनना
- पुष्पक विमान पर चढ़कर श्री सीता-रामजी का अवध के लिए प्रस्थान, श्री रामचरित्र की महिमा
उत्तर काण्ड
- मंगलाचरण
- भरत विरह तथा भरत-हनुमान मिलन, अयोध्या में आनंद
- श्री रामजी का स्वागत, भरत मिलाप, सबका मिलनानन्द
- राम राज्याभिषेक, वेदस्तुति, शिवस्तुति
- वानरों की और निषाद की विदाई
- रामराज्य का वर्णन
- पुत्रोत्पति, अयोध्याजी की रमणीयता, सनकादिका आगमन और संवाद
- हनुमान्जी के द्वारा भरतजी का प्रश्न और श्री रामजी का उपदेश
- श्री रामजी का प्रजा को उपदेश (श्री रामगीता), पुरवासियों की कृतज्ञता
- श्री राम-वशिष्ठ संवाद, श्री रामजी का भाइयों सहित अमराई में जाना
- नारदजी का आना और स्तुति करके ब्रह्मलोक को लौट जाना
- शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह, गरुड़जी का काकभुशुण्डि से रामकथा और राम महिमा सुनना
- काकभुशुण्डि का अपनी पूर्व जन्म कथा और कलि महिमा कहना
- गुरुजी का अपमान एवं शिवजी के शाप की बात सुनना
- रुद्राष्टक
- गुरुजी का शिवजी से अपराध क्षमापन, शापानुग्रह और काकभुशुण्डि की आगे की कथा
- काकभुशुण्डिजी का लोमशजी के पास जाना और शाप तथा अनुग्रह पाना
- ज्ञान-भक्ति-निरुपण, ज्ञान-दीपक और भक्ति की महान् महिमा
- गरुड़जी के सात प्रश्न तथा काकभुशुण्डि के उत्तर
- भजन महिमा
- रामायण माहात्म्य, तुलसी विनय और फलस्तुति
- रामायणजी की आरती
प्रतिदिन श्री राम चरित मानस का पथ करने से हमें मनवांछित फल की प्राप्ति होती है ।
श्री राम चरित मानस का पाठ कैसे करें ?
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