माता महागौरी की कथा
माता दुर्गा की आठवीं रूप कौन सा हैं?
इस कथा में हम जानेंगे की माता दुर्गा की आठवीं रूप कौन सा हैं? नवरात्री के आठवें दिन किनकी पूजा होती है? माता महागौरी का जन्म कैसे हुआ? माता महागौरी का मंत्र क्या है? माता महागौरी की आरती और माता महागौरी की पूजा कैसे करे?
माँ दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। इनका रूप पूर्णतः गौर वर्ण है। इनकी रंग शंख, चंद्र और कुंद के फूल के समान है। मां महागौरी की अवस्था आठ वर्ष की मानी गई है, अष्टवर्षा मवेद गौरी। इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है।
इनकी चार भुजाएं हैं। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है। मां वृषभवाहिनी व शांतिस्वरूपा हैं।
माता महागौरी की पूजा अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम पाप धुल जाते हैं। भक्तो के पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।
भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। कहते है जो स्त्री मां की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वंय करती हैं।
माता महागौरी का मंत्र
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
माता महागौरी की कथा
पार्वती जी ने शिव जी पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। घोर तप के कारण से इनका शरीर काला पड़ गय। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं।
इनकी एक और भी कथा है इसके अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी तपस्या कर रही थीं । देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया।
देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और माँ ने उसे अपना वाहन बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।
माँ दुर्गा के महागौरी की पूजा विधि
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।
अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए नहीं तो 2 कन्याओं की पूजा करें। कन्याओं की आयु 2 साल से ऊपर और 10 साल से अधिक न हो। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए।
माता महागौरी की आरती
जय महागौरी जगत की माया।
जया उमा भवानी जय महामाया।।
हरिद्वार कनखल के पासा।
महागौरी तेरा वहां निवासा।।
चंद्रकली और ममता अंबे।
जय शक्ति जय जय मां जगदंबे।।
भीमा देवी विमला माता।
कौशिकी देवी जग विख्याता।।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा।
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा।।
सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया।
उसी धुएं ने रूप काली बनाया।।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया।
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया।।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया।
शरण आनेवाले का संकट मिटाया।।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता।
मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता।।
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो।
महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो।।
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