स्थानेश्वर महादेव मंदिर, कुरुक्षेत्र
बिना इस मंदिर की पूजा किये, कुरुक्षेत्र की यात्रा पूर्ण नहीं होती
धर्म ग्रंथों के स्वयं ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा जी ने, यहां ब्रह्मांड का पहला शिवलिंग स्थापित किया गया इस मंदिर में शिवलिंग स्थापना के बाद सबसे पहले स्वयं ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग का पूजन किया था। इस लिहाज से यह स्थान शिव भक्तों के लिए एक पावन तीर्थ है। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती हैै।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के थानेसर शहर में एक प्राचीन शिव मन्दिर है। यह मंदिर कुरुक्षेत्र के प्राचीन मंदिरों मे से एक है। यह करीब ५००० साल पुराण बताया जाता है। इस तरह आप इसे महाभारत कालीन मंदिर भी कह सकते हैं। इस मंदिर का नाम स्थानेश्वर, स्थाणु शब्द से पड़ा। स्थाणु का अर्थ होता है शिव का निवास स्थान। जानकारों के अनुसार, अपनी महिमा के कारण यह शहर सम्राट हर्षवर्धन के काल में राजधानी हुआ करता था।
धर्म ग्रंथों के स्वयं ब्रह्मांड के रचयिता ब्रह्मा जी ने, यहां ब्रह्मांड का पहला शिवलिंग स्थापित किया गया इस मंदिर में शिवलिंग स्थापना के बाद सबसे पहले स्वयं ब्रह्मा जी ने ही शिवलिंग का पूजन किया था। इस लिहाज से यह स्थान शिव भक्तों के लिए एक पावन तीर्थ है। इसलिए कहा जाता है कि कुरुक्षेत्र की तीर्थ यात्रा इस मंदिर की यात्रा के बिना पूरी नही मानी जाती हैै।
स्थानेश्वर महादेव मंदिर की छत गुंबद के आकर की है एवं छत के सामने की तरफ का भाग एक लंबा अमला के आकर का है। मंदिर के अन्दर छत पर आज भी प्राचीन कलाकृतियाँ विद्यमान हैं।
मंदिर के सामने एक छोटा कुण्ड स्थित है। इस मंदिर में स्थित कुंड के जल को दिव्य प्रभाव वाला माना जाता है। जिसके बारे में यह माना जाता है कि इसकी कुछ बूँदों से राजा बान का कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। यहां स्थित पवित्र कुंड, सदियों पुराना वट वृक्ष विशेषतौर पर लोगों की आस्था का केंद्र हैं। अब इस कुंड के बीचोंबीच नीलकंठ महादेव की एक मूर्ति स्थापित की गई है
महाभारत के समय यहां भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ शिवजी का पूजन कर महाभारत के युद्ध में विजयश्री प्राप्त करने का आशीर्वाद लिया था।
मुखय मंदिर के पास ही एक अन्य मंदिर है नवग्रह और भद्रकाली मंदिर। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह मंदिर भारतीय ज्योतिष के नौ ग्रहों और माता भद्रकाली को समर्पित है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर सदियों पुराने वट वृक्ष के चारों और निर्मित किया गया है। यह वट वृक्ष महाभारतकालीन बताया जाता है।
किंवदंतियों के अनुसार, ब्रह्मांड निर्माण के युग के दौरान में भगवान ब्रह्मा ने इस बरगद के पेड़ से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की रचना की थी। वामन पुराण के अनुसार, इस बरगद के पेड़ की सिर्फ एक झलक और लिंगम मनुष्य के सभी पापों को धो देता है। कहते हैं कि इस बरगद के पेड़ को स्पर्श करने पर इसकी दिव्या मनुष्य की आत्मा को शांति की अनुभूति देती है।
वैसे तो स्थानेश्वर मंदिर में सभी त्यौहार मनाये जाते हैं किन्तु विशेषकर महाशिवरात्रि के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन मंदिर को फूलों एवं दीपमालिकाओं से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। यह मन्दिर थानेसर से तीन किलोमीटर दूर झांसा मार्ग पर स्थित है। इतिहास के अनुसार यहां सिखों के नौवें गुरु तेगबहुदुर जी भी आए थे। इस मंदिर के समीप उनकी याद में गुरुद्वारा नवीं पातशाही भी बना हुआ है।
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