रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

सत्यकाम जाबाल

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ये कथा छान्दोग्य उपनिषद में दी गयी है।

प्राचीनकाल में जाबाला नाम की एक निर्धन दासी रहती थी । उसका जाबाल नाम का एक पुत्र था । जाबाला दिनभर कडा परिश्रम कर अपना तथा अपने पुत्र का पेट भरती थी । उसने अपने पुत्र को भी सदा सत्य बोलना सिखाया था ।

जाबाल बहुत ही जिज्ञासु था। जाबाल में शिक्षा प्राप्त करने की बहुत उमंग थी ।

एक दिन उस के नगर में गौतम ऋषि आएं। वे स्नान करने नदी पर गए तो वहाँ घाट पर उन्होंने एक बालक को देखा जो कोई मंत्र दुहरा रहा था। गौतम ऋषि त्रिकालदर्शी थे उन्होंने तुरंत उस बालक के विषय ने सबकुछ जान लिया कि ये कोई साधारण बालक नही है।

उसको अपने पास बुलाया और उसका परिचय पूछा। उसने अपना परिचय बताया कि वो “जबाला का पुत्र जाबाल” है। ऋषि गौतम ने पुनः: कहा,” पुत्र तुम बहुत जिज्ञासु और बुद्धिमान प्रतीत होते हो, मुझे अपना गोत्र बताओ। उस बच्चे ने उत्तर दिया,”ऋषिवर, गोत्र तो मुझे ज्ञात नही, अभी माता से पूछ कर बताता हू। ”

वो भाग कर माता के पास आया, जबाला एक दासी थी। वह स्थान स्थान पर कार्य कर अपना जीवन यापन करती थी, बालक ने माता से ये सब प्रकरण बताया और अपना गोत्र पूछ लिया ।

माता ने कहा ,” जाओ पुत्र, ऋषि से कहना कि मेरी माता जबाला एक दासी है सब स्थानों पर सभी प्रकार से सेवा करती थी उन्ही दिनों मेरा जन्म हुआ तो मेरी माता को ज्ञात नही कि मेरे पिता कौन है और उनका गोत्र क्या था।

बालक ने अक्षरशः यही बात ऋषि को बता दी। ऋषि ने कहा, मुझे तुम्हारी योग्यता पर पूर्ण विश्वास है। तदुपरान्त गौतम ऋषि ने सत्यकाम का उपनयन संस्कार किया । गौतम ऋषि बोले की आज से मैं तुम्हे नया नाम देता हूँ। आज से तुम “सत्यकाम जाबाल” अर्थात “सत्य में रूचि रखनेवाला जबाला का पुत्र” के नाम से जाएं जाओगे।

कुछ वर्ष तक वो गुरु जी की सेवा करता रहा तो गुरु जी ने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय किया। गौतम ऋषि ने उसको चार सौ गायें दी और कहा सत्यकाम जाबाल जब ये गाय एक सहस्त्र हो जाये तब मेरे पास आ जाना।

उस समय परीक्षा आज के समान नही होती थी गुरु बहुत कठिन माध्यमो से अपने शिष्यों को आँकते थे।

सत्यकाम उन्हें ले कर जंगल मे ऐसे स्थान और पहुँच गया जहाँ हरियाली और जल प्रचुर मात्रा में थी। वह बड़े परिश्रम से गायों की सेवा में जुट गया। कई वर्षों तक वो सिंहो – व्याघ्रों आदि से अपनी गायो की रक्षा करता रहा।

एक दिन अचानक एक बैल मनुष्यों की भांति बोला `हमारी संख्या अब सहस्र हो गई है, अब हमें आचार्य जी के पास ले जाओ । उससे पूर्व मैं तुम्हें थोडा ज्ञान देता हूं । तुम्हारी सेवा से मैं सन्तुष्ट हुआ ।’ और बैल ने ज्ञान की कई बातें बताई।

बैल के रूप में प्रत्यक्ष वायुदेव ही बोल रहे थे । उन्होंने सत्यकाम को ईश्वरीय ज्ञान के एक चौथा भाग का उपदेश किया । वे बोले अब तुम्हें आगे का ज्ञान अग्नि देवता देंगे ।

वायुदेवता की आज्ञानुसार अगले दिन सत्यकाम गायें लेकर आश्रम की ओर निकला । मार्ग में सायंकाल हुई तब उसने गायों को बांधा, अग्नि प्रज्वलित की एवं उसमें समिधा डालने लगा । अग्नि देवता प्रसन्न हुए एवं बोलें, सत्यकाम, मैं तुम्हें ईश्वरीय ज्ञान का चौथा भाग बताता हूं । इसके बाद का ज्ञान तुम्हे हंस देगा।

अगले दिन सायंकाल सत्यकाम ने गायों को बांधा, अगि्न प्रज्वलित की एवं उसमें समिधा डालने लगा । इतने में वहां एक हंस उडता हुआ आया एवं बोला, `सत्यकाम, मैं तुम्हें ईश्वरीय ज्ञान का चौथा भाग बताता हूं । इसके बाद का बाकी ज्ञान तुम्हें पनडुब्बा पक्षी बताएगा । हंस के रूप में तो प्रत्यक्ष सूर्य ही बोल रहे थे ।

अगले दिन फिर सायंकाल के समय सत्यकाम ने गायों को बांधा, अगि्न प्रज्वलित की एवं वह उसमें समिधा डालने लगा । इतने में वहां एक पनडुब्बा पक्षी उडते हुए आया एवं बोला, `सत्यकाम, मैं तुम्हें ईश्वरीय ज्ञान का चौथा भाग बताता हूं ।’ प्राणदेवता ने ही इस पक्षी का रूप लिया था ।

इस प्रकार गुरु के आश्रम तक पहुंचने तक सत्यकाम जाबाल मात्र चार दिन में ब्रह्मज्ञानी बन गया था । उसे दूर से देखकर ही गौतम ऋषि सबकुछ समझ गए । उसके मुख मंडल पर ज्ञान की आभा दमक रही थी।

गौतम ऋषि को ज्ञात था मार्ग में क्या क्या हुआ फिर भी परिहास में बोले, “वत्स तू तो बड़ा ज्ञानी लग रहा है अवश्य किसी और से ज्ञान ले कर आया है”।

जाबाल अपने गुरु के चरणो में गिर कर बोला आप ही मेरे गुरु है। मार्ग में कुछ जीव मिले जो मनुष्य नही थे। उन्होंने मुझे अवश्य ज्ञान दिया लेकिन आप के ज्ञान दिए बिना मेरा उद्धार नही होगा फिर गुरु जी ने सत्यकाम जाबाल को और भी ज्ञान की बातें सिखाई

गुरु जी ने अपने अन्य शिष्यों को बताया कि सत्यकाम जाबाल ने गुरु की आज्ञा पूर्ण की और बिना वेद के अध्ययन के बिना पठन पाठन के समस्त ज्ञान प्राप्त किया है , इसके ज्ञान देने के लिए बैल, हंस औऱ जलमुर्ग आये थे।

बाद में गौतम ऋषि ने सत्यकाम जाबाल को ही अपने आश्रम का आचार्य बना दिया और स्वयं अपनी धर्मपत्नी के साथ तपस्या के लिए चले गए। आगे चलकर यही सत्यकाम बहुत प्रसिद्ध ऋषि हुए एवं उनसे शिक्षा ग्रहणकर कई शिष्य ज्ञानी बने ।

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