श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह प्रसिद्ध तीर्थधाम ऐसी जगह पर स्थित है जहां अंटार्कटिका तक सोमनाथ समुद्र के बीच एक सीधी रेखा में भूमि को कोई भी हिस्सा नहीं है। यह तीर्थस्थल भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से पहला माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण खुद चन्द्रदेव सोमराज ने किया था, जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है।
गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे सोमनाथ नामक विश्वप्रसिद्ध मंदिर में यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ देव स्थापित है। उनकी पूजा पंचामृत से की जाती है.
पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराण में विस्तार से बताई गई है। वहीं ऋग्वेद में भी सोमेश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख है।
चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने ही भगवान् शिव को अपना स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी। अतः इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वे भगवान् शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है। उनके लौकिक-पारलौकिक, सारे कृत्य स्वयमेव सफल हो जाते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिम में अरब सागर के तट पर स्थित आदि ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ महादेव मंदिर की छटा ही निराली है। यह तीर्थस्थान देश के प्राचीनतम तीर्थस्थानों में से एक है
श्री सोमनाथ की कथा
प्रजापति दक्ष की ८० कन्याओं में से सत्ताइस का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया।
किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें ‘क्षयग्रस्त’ हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता बरसाने का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे।
उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- ‘चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभास क्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
ब्रह्माजी के कहे अनुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान् की आराधना का सारा कार्य पूरा किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार महा मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- ‘चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।’ चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की कि आप माता पार्वती जी के साथ सदा के लिए यहाँ निवास करें। भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे।
चन्द्रमा के द्वारा पूजे जाने के कारन ही ये सोमनाथ कहलाये।
आपको बता दें कि यह प्रसिद्ध तीर्थधाम ऐसी जगह पर स्थित है जहां अंटार्कटिका तक सोमनाथ समुद्र के बीच एक सीधी रेखा में भूमि को कोई भी हिस्सा नहीं है। यह तीर्थस्थल भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग में से पहला माना जाता है। इस मंदिर के निर्माण से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा माना जाता है कि, इस मंदिर का निर्माण खुद चन्द्रदेव सोमराज ने किया था, जिसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है।
शिव पुराण में कथा है कि जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे तो देवताओं ने यहां एक कुंड की स्थापना की। उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड।
कहते हैं कि कुंड में भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं।
असाध्य से असाध्य रोग भी कुंड में स्नान करने के बाद खत्म हो जाता है।
शिव पुराण में ये भी लिखा है कि अगर किसी वजह से आप सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं तो सोमनाथ की उत्पति की कथा सुनकर भी आप वही पौराणिक लाभ उठा सकते हैं।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास
सोमनाथ मंदिर के समृद्ध और अत्यंत वैभवशाली होने की वजह से इस मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों और पुर्तगालियों द्धारा तोड़ा गया तो साथ ही कई बार इसका पुर्ननिर्माण भी हुआ है। वहीं महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर आक्रमण करना, इतिहास में काफी चर्चित है। कई बार हिन्दू शासकों द्धारा इसका निर्माण भी करवाया गया है।
आपको बता दें कि सोमनाथ मंदिर एक ईसा से भी पहले का आस्तित्व में था। ऐसा माना जाता है कि इसका दूसरी बार निर्माण करीब सांतवी शताब्दी में वल्लभी के कुछ मैत्रिक सम्राटों द्धारा करवाया गया था। इसके बाद ८ वीं सदी में करीब 725 ई में सिंध के अरबी गर्वनर अल-जुनायद ने इस वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर हमला कर इसे ध्वस्त कर दिया था।
जिसके बाद इसका तीसरी बार निर्माण 815 ई में हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थ धाम सोमनाथ मंदिर का निर्माण गुर्र प्रतिहार राजा नागभट्ट ने करवाया था, उन्होंने इस लाल पत्थरों का इस्तेमाल कर बनवाया था। हालांकि, सोमनाथ मंदिर पर सिंध के अरबी गवर्नर अल-जुनायद के हमला करने का कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है।
इसके बाद 1024 ईसवी में महमूद गजनवी ने इस अत्यंत वैभवशाली सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर दिया था। ऐसा कहा जाता है कि, भारत यात्रा पर आए एक अरबी यात्री अल बरूनी ने अपने यात्रा वृतान्त में सोमनाथ मंदिर की भव्यता और समृद्धता का वर्णन किया था, जिसके बाद महूमद गजनवी ने इस मंदिर पर लूटपाट करने के इरादे से अपने करीब 5 हजार साथियों के साथ इस पर हमला कर दिया था।
इस हमले में महमूद गजनवी ने न सिर्फ मंदिर की करोड़ों की संपत्ति लूटी, शिवलिंग को क्षतिग्रस्त किया एवं मूर्तियां को ध्वस्त किया, बल्कि इस हमले में हजारों बेकसूर लोगों की जान भी ले ली। सोमनाथ मंदिर पर महमूद गजनवी द्धारा किया गया कष्टकारी हमला इतिहास में भी काफी चर्चित है।
सोमनाथ मंदिर पर गजनवी के आक्रमण करने के बाद इसका चौथी बार पुर्नर्निमाण मालवा के राजा भोज और सम्राट भीमदेव के द्धारा करवाया गया। फिर 1093 ईसवी में सिद्धराज जयसिंह ने भी इस मंदिर की प्रतिष्ठा और निर्माण में अपना योगदान दिया था।
1168 ईसवी में विजयेश्वरे कुमारपाल और सौराष्ट्र के सम्राट खंगार ने इस मंदिर के सौंदर्यीकरण पर जोर दिया। हालांकि, इसके बाद फिर सोमनाथ मंदिर पर 1297 ईसवी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुरसत खां ने गुजरात पर अपना शासन कायम कर लिया और इस दौरान उसने इस पवित्र तीर्थधाम को ध्वस्त कर दिया। इसके साथ ही मंदिर की प्रतिष्ठित शिवलिंग को खंडित कर दिया एवं जमकर लूटपाट की।
इसके बाद लगातार इस मंदिर का उत्थान-पतन का सिलसिला जारी रहा। 1395 ईसवी में इस पवित्र तीर्थधाम पर गुजरात के सुल्तान मुजफ्फरशाह ने लूटपाट की और फिर 1413 ईसवी में उसके बेटे अहमदशाह ने इस मंदिर में तोड़फोड़ कर तबाही मचाई।
इसके बाद इतिहास के मुगल शासक औरंगजेब ने अपने शासनकाल में इस मंदिर पर दो बार आक्रमण किए। पहला हमला उसने 1665 ईसवी में किया जबकि दूसरा हमला 1706 ईसवी में किया। दूसरे हमले में औरंगजेब ने न सिर्फ इस मंदिर में तोड़फोड़ कर जमकर लूटपाट की बल्कि कई लोगों की हत्या भी करवा दी।
इसके बाद जब भारत के अधिकांश हिस्सों पर पर मराठों ने अपना अधिकार स्थापित कर लिया, फिर 1783 ईसवी में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई ने सोमनाथ जी के मूल मंदिर से कुछ ही दूरी पर पूजा-अर्चना के लिए सोमनाथ महादेव जी का एक और मंदिर का निर्माण करवा दिया।
वहीं गुजरात में स्थित इस वर्तमान मंदिर का निर्माण भारत के पूर्व गृह मंत्री स्वर्गीय सरदार वल्लभ भाई पटेल जी ने करवाया था। जिसके बाद साल 1951 में देश के पहले राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने सोमनाथ मंदिर में ज्योर्तिलिंग को स्थापित किया था।
फिर, साल 1962 में भगवान शिव जी को समर्पित हिन्दुओं का यह पवित्र तीर्थ धाम पूर्ण रुप से बनकर तैयार हुआ। इसके बाद 1 दिसंबर 1995 को भारत के पूर्व राष्ट्रपति शंकर दययाल शर्मा ने इस पवित्र तीर्थ धाम को राष्ट्र की आम जनता को समर्पित कर दिया था और अब यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र बन चुका है।
सोमनाथ मंदिर की स्थापत्य शैली
यह मंदिर गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप, तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। इसका शिखर 150 फुट ऊंचा है। इसके शिखर पर स्थित कलश का भार दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। यह हमारे प्राचीन ज्ञान व सूझबूझ का अद्भुत साक्ष्य माना जाता है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। हिन्दूओं के इस पवित्र तीर्थस्थल सोमनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण वर्तमान में चालुक्य शैली में किया गया है। इसके साथ ही यह प्राचीन हिन्दू वास्तुकला का नायाब नमूना भी माना जाता है।
इस मंदिर की अनूठी वास्तुकला एवं शानदार बनावट लोगों को अपनी तरफ आर्कषित करती हैं। इस मंदिर के दक्षिण दिशा की तरफ आर्कषक खंभे बने हुए हैं, जो कि बाणस्तंभ कहलाते हैं, वहीं इस खंभे के ऊपर एक तीर रखा गया है, जो कि यह प्रदर्शित करता है कि इस पवित्र सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच पृथ्वी का कोई भी हिस्सा नहीं है।
यह मंदिर करीब 10 किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में फैला हुआ है, जिसमें करीब 42 मंदिर है। यहां पर तीन नदियां हिरण, सरस्वती, और कपिला का अद्बुत संगम है, जहां भक्तजन आस्था की डुबकी लगाते हैं। इस मंदिर में पार्वती, लक्ष्मी, गंगा, सरस्वती, और नंदी की मूर्तियां विराजित हैं। इस पवित्र तीर्थस्थल के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की बेहद सुंदर मूर्ति स्थापित है।
सोमनाथ मंदिर के परिसर में एक बेहद खूबसूरत गणेश जी का मंदिर स्थित है साथ ही उत्तर द्धार के बाहर अघोरलिंग की प्रतिमा स्थापित की गई है। हिन्दुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल में गौरीकुण्ड नामक सरोवर बना हुआ है और सरोवर के पास एक शिवलिंग स्थापित है।
इसके अलावा इस भव्य सोमनाथ मंदिर के परिसर में माता अहिल्याबाई और महाकाली का बेहद सुंदर एवं विशाल मंदिर बना हुआ है।
सोमनाथ भ्रमण
वायु मार्ग: गुजरात के सोमनाथ मंदिर से करीब 55 किलोमीटर दूर स्थित केशोड एयरपोर्ट है, जो कि सोमनाथ मंदिर से सबसे पास है। यह एयरपोर्ट सीधा मुंबई से जुड़ा हुआ है, इस एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद बस और टैक्सी की सहायता से बड़ी आसानी से सोमनाथ मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग: सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहाँ से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क है।
सड़क मार्ग:सोमनाथ मंदिर अहमदाबाद से करीब 400 किलोमीटर, भावनगर से 266 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुजरात से किसी भी स्थान से इस पवित्र तीर्थ धाम पहुंचने के लिए शानदार बस सेवाएं उपलब्ध हैं। इसके साथ ही सोमनाथ मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले तीर्थयात्रियों के ठहरने की एवं भोजन की भी उत्तम व्यवस्था है।
मंदिर के आसपास ही मंदिर के ट्र्स्ट द्धारा तीर्थयात्रियों को किराए पर कमरे उलब्ध करवाए जाते हैं। सोमनाथ मंदिर के प्राचीन इतिहास और इसकी अद्भुत वास्तुकला एवं शानदार बनावट की वजह से यहां दूर-दूर से भक्तजन दर्शन के लिए आते हैं।
विश्रामशाला: इस स्थान पर तीर्थयात्रियों के लिए गेस्ट हाउस, विश्रामशाला व धर्मशाला की व्यवस्था है। साधारण व किफायती सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावल में भी रुकने की व्यवस्था है।
सोमनाथ मंदिर से जुड़ी रोचक और दिलचस्प बातें
- लाखों लोगों की आस्था से जुड़ा यह सोमनाथ मंदिर पहले प्रभासक्षेत्र या फिर प्रभासपाटण के नाम से जाना जाता है।
- इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर छोड़ा था।
- गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर के दक्षिण में समुद्र के किनारे एक खंभा बना हुआ है, जिसके ऊपर एक तीर रखकर यह प्रदर्शित किया गया है कि, सोमनाथ मंदिर और दक्षिण ध्रुव के बीच में भूमि का कोई भी हिस्सा मौजूद नहीं है।
- भगवान शिव को समर्पित इस प्रसिद्ध मंदिर में स्थित शिवलिंग में रेडियोधर्मी गुण है, जो कि पृथ्वी के ऊपर अपना संतुलन बेहद अच्छे से बनाए रखती है।
- इस मंदिर के अत्यंत वैभवशाली और समृद्ध होने की वजह से इसे कई बार तोड़ा गया और इसका निर्माण किया गया। इतिहास में महमूद गजनवी द्धारा इस मंदिर पर लूटपाट की घटना काफी चर्चित है। ऐसा माना जाता है कि इसके बाद ही यह मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गया।
- ऐसी मान्यता है कि आगरा में रखे देवद्धार सोमनाथ मंदिर के ही है, जो कि महमूद गजनवी अपने साथ लूट कर ले गया था।
- इस मंदिर में रोजाना रात को 1 घंटे का लाइट शो होता है, जो कि शाम को साढ़े 7 बजे से साढ़े 8 बजे तक होता है, इस शो में हिन्दुओं के इतिहास को दिखाया जाता है।
- सोमनाथ मंदिर में कार्तिक, चैत्र एवं भाद्र महीने में श्राद्ध करने का बहुद महत्व हैं, इन तीनों महीनों में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
- सुरक्षा के लिहाज से मुस्लिमों को इस मंदिर के दर्शन के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ती है, इसके बाद ही उन्हें यहां प्रवेश दिया जाता है।
- सोमनाथ मंदिर से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर द्धारका नगरी है, जहां द्धारकाधीश के दर्शन करने दूर-दूर से लोग आते हैं।
- गुजरात के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित सोमनाथ जी, भारत के 12 ज्योतिर्लिंग में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग है, इसकी स्थापना के बाद अगला ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम, द्धारका और वाराणसी में स्थापित किया गया था।
- सोमनाथ जी की मंदिर की व्यवस्था और देखभाल सोमनाथ ट्रस्ट करती है, सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग बगीचे आदि देकर मंदिर की आय की व्यवस्था की है। इनकी आधिकारिक वेबसाइट https://www.somnath.org/ से भी जानकारी ली जा सकती है ।
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