सम्पूर्ण भारत में ४ मुख्य चौसठ योगिनी मंदिर हैं। २ अन्य मंदिरों का भी विवरण मिलता हैं लेकिन वे काम प्रसिद्ध हैं। इन चार मंदिरों में २ उड़ीसा में तथा २ मध्य प्रदेश में हैं। ये सभी चौसठ योगिनी मंदिर अत्यंत ही अनोखे एवं अद्भुत हैं। इनकी बिना छत की गोलाकार संरचना व उन पर उत्कीर्णित योगिनियों की अद्भुत प्रतिमाएं इन्हे अद्वितीय बनाती हैं।
भुवनेश्वर से २० किलो मीटर की दुरी पर हीरापुर में भी एक ६४ योगिनी मंदिर हैं। यह मंदिर प्रातः ६ बजे से संध्या ७ बजे तक खुला रहता है। मंदिर बंद करने के ठीक पूर्व संध्या आरती की जाती है। मंदिर में प्रवेश शुल्क नहीं है। मंदिर में दर्शन करने के लिए प्रातःकाल का समय सर्वोत्तम है। दोपहर के समय यहाँ अत्यंत गर्मी का वातावरण रहता है।
मंदिर के शोधकर्ताओं ने इस मंदिर की आयु लगभग ८ वीं. से १० वीं. सदी के मध्य की निर्धारित की है। स्थानीय गांव वासी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते रहे हैं। यद्यपि इसकी आधिकारिक खोज १९५३ में ओडिशा राज्य संग्रहालय के श्री केदारनाथ महापात्रा ने की थी। तब से यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत आता है।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण भौम वंश की साम्राज्ञी हीरादेवी ने करवाया था। भौम वंश में विभिन्न समय में अनेक साम्राज्ञियों ने शासन किया है। साम्राज्ञी हीरादेवी के नाम पर ही इस गाँव को हीरापुर कहा जाता है। मंदिर के मध्य स्थित देवी के नाम पर इस मंदिर को महामाया मंदिर भी कहा जाता है। रानी स्वयं ही योगिनी पंथ की अनुयायी थीं अथवा उन्होंने योगिनी पंथ के अन्य अनुयायियों के लिए यह मंदिर निर्मित किया था, यह अनुमान लगाना कठिन है।
१६ वीं. सदी के एक धर्म परिवर्तित मुसलमान सेनाध्यक्ष कालापहाड़ ने इस मंदिर पर भी आक्रमण किया था तथा यहाँ की मूर्तियों को खंडित किया था। कालापहाड़ पुरी एवं कोणार्क के मंदिरों के विध्वंसक के रूप में कुप्रसिद्ध है।
योगिनियाँ देवियाँ अथवा यक्षिणियाँ होती हैं जिन्हे तांत्रिक क्रिया के अंतर्गत पूजा जाता है। यद्यपि उनके मंदिरों में सामान्यतः ६४ योगिनियों के समूह होते हैं, तथापि कुछ मंदिरों में ४२ अथवा ८१ योगिनियों के समूहों का भी उल्लेख मिलता है। इन योगिनियों को चक्र के आकार में प्रदर्शित किया जाता है। कदाचित यही कारण है कि उनके मंदिर भी चक्र के आकार में निर्मित होते हैं। प्रत्येक योगिनी इस चक्र अर्थात पहिये के एक आरे पर स्थापित होती है।
प्रत्येक मंदिर में इन योगिनियों की सूची में भिन्नता होती है। यहाँ एक विशेष तथ्य का उल्लेख करना चाहूँगी कि प्रत्येक योगिनी का एक विशेष नाम होता है तथा किसी भी दो मंदिरों में इन नामों की सूची समान नहीं होती। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि किसी मंदिर की योगिनियों की सूची में स्थानीय प्रभाव अवश्य निर्णायक कारक रहे होंगे। इन योगिनियों में कुछ दयालु तो कुछ क्रूर प्रतीत होती हैं। प्रत्येक योगिनी की एक विशेष शक्ति होती है जिसके आधार पर ही अपनी इच्छा पूर्ति के लिए भक्तगण संबंधित योगिनी की आराधना करते हैं। ये इच्छाएं संतान प्राप्ति से लेकर शत्रु के विनाश तक कुछ भी हो सकती हैं।
मंदिर का वास्तुशिल्प
यह एक छोटा सा गोलाकार मंदिर है। इसका निर्माण स्थानीय बलुआ पत्थर द्वारा किया गया है, वहीं मूर्तियों के निर्माण में काली ग्रेनाइट शिला का प्रयोग किया गया है। योगिनी मंदिर की वास्तुकला का अन्य मंदिरों से कोई साम्य नहीं है। ये छोटे, निहित तथा पूर्णतः केंद्रित मंदिर हैं जो अपने अनुयायियों की छोटी संख्या के लिए लक्षित हैं। अतः ओडिशा में स्थित होने के बाद भी हम इन्हे कलिंग वास्तुकला नहीं कह सकते। यह स्वयं में एक विशेष वास्तुकला है।
मंदिर के समक्ष, पूर्व की ओर एक पीठिका है जिसे सूर्य पीठ कहा जाता है। साधक अथवा भक्त इस पीठ का प्रयोग सूर्य की आराधना के लिए करते हैं। आपको स्मरण होगा, कोणार्क सूर्य मंदिर भी समीप ही स्थित है। सूर्य आराधना यहाँ की परंपरा प्रतीत होती है।
यदि आप इसे ऊपर से देखेंगे, तो इसका आकार स्त्री योनि के समान प्रतीत होता है। यह ६० आरे समेत पहिये अथवा चक्र के समान भी प्रतीत होते हैं।
मंदिर का प्रवेश द्वार संकरा तथा कम ऊंचाई का है। आपको झुककर भीतर प्रवेश करना पड़ता है। वह भी एक समय केवल एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है। प्रवेशद्वार की बाहरी भित्तियों पर द्वारपाल जय एवं विजय उत्कीर्णित हैं। मंदिर की ओर जाते अत्यंत सँकरे गलियारे की भित्तियों पर काल एवं विकाल की छवियाँ उत्कीर्णित हैं। मंदिर के भीतर प्रवेश करते ही सँकरेपन का आभास लुप्त हो जाता है। कम ऊंचाई की गोलाकार भित्तियों के मध्य से खुला आकाश झाँकने लगता है। किन्तु यहाँ आपका ध्यान आकर्षित करती हैं मंदिर के आकार में निर्मित आलों की एक सुव्यवस्थित पंक्ति तथा इन आलों के भीतर स्थापित काले ग्रेनाइट में गढ़ी योगिनियों की प्रतिमाएं।
प्रथम दृष्टि में सभी योगिनियाँ समान प्रतीत होती हैं। कुछ क्षण ध्यानपूर्वक निहारने पर उनके मध्य का अंतर दृष्टिगोचर होने लगता है। उनके भाव, मुद्राएं तथा आसन सभी भिन्न हैं। लगभग २ फीट ऊंची प्रत्येक प्रतिमा भिन्न तत्व पर खड़ी है। कई प्रतिमाएं खंडित भी हैं।
चंडी पीठ
६० योगिनियाँ गोलाकार में स्थापित हैं। गोलाकार के मध्य एक चौकोर पीठ है जिसे चंडी पीठ कहा जाता है। चंडी पीठ की भित्तियों पर बने आलों में किसी समय बाकी की ४ योगिनियाँ थीं जिन में से अब एक प्रतिमा अनुपस्थित है। ४ आलों के भीतर ४ भैरवों की भी प्रतिमाएं हैं। देवी मंदिरों में भैरव की उपस्थिति अवश्य रहती है।
दक्षिणावर्त घूमते हुए ३१ क्रमांक की योगिनी महामाया है जो इस मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं। महामाया देवी की प्रतिमा वस्त्रों, आँखों एवं आभूषणों द्वारा पूर्णतः अलंकृत है। उन्हे देख हमारा मस्तक उनका आशीष प्राप्त करने के लिए सहज ही उनके समक्ष झुक जाता है। उनके अलंकरण के कारण उनकी प्रतिमा के भाव एवं मुद्रा अलंकरण के पीछे छुप जाते हैं। ये मानवी सिर के ऊपर खड़ी हैं।
महामाया के समक्ष एक बड़ा दीपक प्रज्ज्वलित था। कहा जाता है की ये दीपक अनंत काल से प्रज्ज्वलित है।
योगिनियों का सौन्दर्य
प्रत्येक योगिनी की प्रतिमा को अत्यंत सुंदरता से गढ़ा है। छरहरा तन, विस्तृत केश सज्जा, अपने नाम से संबंधित मुद्रा तथा उनसे संबंधित वाहन पर सवार इन योगिनियों का सौन्दर्य अत्यंत दर्शनीय है। कुछ योगिनियों के शीष पशु सदृश हैं, जैसे वराही तथा गणेशी, फिर भी उनकी नारीसुलभ मादकता में तनिक भी कमी नहीं है। यही मोहकता योगिनियों की पहचान है।
मंदिर की बाह्य भित्ति
मंदिर की बाह्य भित्ति अपेक्षाकृत साधारण है। समान दूरी पर ९ आलें हैं जिनके भीतर देवी की ९ मूर्तियाँ हैं। इन्हे नव-कात्यायनी अथवा नव-दुर्गा कहा जाता है।
बाहरी प्रतिमाओं का आकार भीतरी प्रतिमाओं से अपेक्षाकृत किंचित विशाल है। कुछ मूर्तियाँ मृत देह पर खड़ी हैं तथा कुछ उन पशुओं पर खड़ी हैं जो साधारणतः मृत देह के समीप पाए जाते हैं, जैसे श्वान, सियार इत्यादि। आपको स्मरण होगा, कुछ तांत्रिक क्रियाओं में मृत देह का प्रयोग किया जाता है। सभी प्रतिमाओं ने हाथों में विभिन्न अस्त्र-शस्त्र धारण किए हैं।
मंदिर के बाहर एक सुंदर पुष्करणी अर्थात मंदिर का जलकुंड है जिस के मध्य एक छोटा मंदिर भी है जो साधारणतया सम्पूर्ण ओडिशा के जलकुंडों में सहसा दृष्टिगोचर होता है। इसे दीप दांडी भी कहा जाता है। यह नाम यह जताता है कि इसका प्रयोग मंदिर को प्रकाशमान करने के लिए किया जाता था।
चौसठ योगिनी उत्सव
प्रत्येक वर्ष, २३ से २५ दिसंबर तक चौसठ योगिनी महोत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें मंदिर के ठीक बाहर स्थित मंच पर ओडिशा नृत्य तथा संगीत का प्रदर्शन होता है। माघ सप्तमी के दिन एक विशाल यज्ञ का भी आयोजन किया जाता है। एवं नवरात्रि के प्रत्येक दिवस चंडी पाठ किया जाता है।
HELLO MAM,
MAI EK ARTIST HU, MERI AGE 30 YEARS HAI, MAI RAJASTHAN SE HU..
APKE DWARA DI GAYI JANKARI MERE LIYE PRECIOUS HAI,
MAI IS NAVRATRE KE PAHLE DIN SE HI 64 YOGINI KI PAINTING BANANE JA RAHA HU,
PR MAINE IN DEVIYO KI PRATIMAYE TOOTI HUI HI PAYI..
NAVRATRI AANE ME SIRF 8 DIN BACHE HAI, PLEASE MERI HELP KIJIYE, MAI KAHA SE ISKI MURTIYO KI COMPLET PICTURES LE SAKTA HU BS MUJHE YAHI JANNA THA APSE..
THANKS ALLOT