रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

शबरी

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वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के सड़सठवें सर्ग में श्री राम और लक्ष्मण की कबंध से भेंट होती है। कबंध एक गंधर्व था जो स्थूलशिरा नामक ऋषि के शाप से राक्षस बन गया था। राम और लक्ष्मण एक गर्त बना कर लकड़ियों का संचय कर के उसका दाह कर देते हैं। इससे कबंध श्राप मुक्त होकर गंधर्व के रूप में प्रकट हो जाता है। वह राम को बताता है कि पंपा सरोवर के किनारे चलते चलते उन्हें शबरी का आश्रम मिलेगा।

शबरी कौन थी?

Shabriभील जाति के एक कबीला, जिसके राजा अज थे। अज की पत्नी का नाम इन्दुमति था। उनके घर में एक कन्या का जन्म हुआ जिसका नाम श्रमणा था। श्रमणा, शबरी का ही दूसरा नाम है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी का जन्म हुआ था।

श्रमणा का विवाह एक भील कुमार से तय हुआ था, विवाह से पहले कई सौ पशु बलि के लिए लाए गए। जिन्हें देख श्रमणा बड़ी आहत हुई।
शबरी (श्रमणा) को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी। श्रमणा ने रात्रि में सभी पशु पक्षियों को आज़ाद कर दिया। जब श्रमणा (शबरी) बाड़े के किवाड़ को खोल रही थी तो, उसको किसी ने देख लिया। इस बात से शबरी डर गयी। शबरी वहां से भाग निकली। शबरी भागते भागते ऋषिमुख पर्वत पर पहुँच गयी, जहाँ पर 10,000 ऋषि रहते थे। शबरी को इस बात का अनुमान नहीं था, कि वह निचली जाति की हैं, और ऋषि उनको अपने आश्रम में स्थान नहीं देंगे।

इसके बावजूद शबरी छुपते हुए कुछ दिनों तक, जब तक वह पकड़ी नहीं गयी, रोज सवेरे ऋषियों के आश्रम में आने वाले पत्तों को साफ कर देती थी, और हवन के लिए सुखी लकड़ियों का बंदोबस्त भी कर देती। बड़े ही भाव से शबरी सविंधाओ से लकड़ियों को ऋषियों के हवन कुण्ड के पास रख देती थी। कुछ दिनों तक ऋषि समझ नही पाए, कि कौन हैं जो, उनके सारे नित्य के काम निपटा रहे हैं? लेकिन एक दिन ऋषियों ने सवेरे जल्दी शबरी को देखा और उसे पकड लिया। उनके सेवा से ऋषि मतंग अति प्रसन्न हो गए और उन्होंने शबरी को अपने आश्रम में शरण दे दी।

एक दिन ऋषि मतंग का अंत समय आया तो वे शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे। तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी। उस समय शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी। महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे।
शबरी को समझाया की “पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं रुक कर उनकी प्रतीक्षा करो।”
अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा। उसने फिर पूछा- कब आएंगे?

महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। महर्षि, शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया। आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए। ये उलट कैसे हुआ। गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ? लेकिन महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।

महर्षि मतंग बोले-
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा।
फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी।
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।
फिर प्रतीक्षा होगी।
फिर उनका विवाह कैकई से होगा।
फिर प्रतीक्षा होगी।
फिर वो जन्म लेंगे।
फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा।
फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा।
तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे।
तब तुम्हे उनके दर्शन होंगे ।

तुम उन्हें कहना की आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये। उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।

अबोध शबरी, इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई। वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- “इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव?” महर्षि मतंग बोले- “वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे। यह भावी निश्चित है। लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे “अवश्य”…! जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। इसलिए प्रतीक्षा करना। वे कभी भी आ सकते है। तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।”

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी। वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है। हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती। कभी भी आ सकतें हैं। हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। शबरी बूढ़ी हो गई। लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही। और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े। शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।

सबरी देखि राम गृह आए। मुनि के वचन समुझि मन भाए।। 
सरसिज लोचन बाहु विसाला। जटा मुकुट सिर उर वनमाला। 
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।। 
प्रेममगन मुख वचन न आवा। पुनि पुनि पदसरोज सिर नावा। 
सादर जल लै चरन पखारै। पुनि सुंदर आसन बैठारे।। 
कंदमूलफल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि। प्रेम सहित प्रभु खाये, बारंबार बखानि।।

गुरु का कथन सत्य हुआ। भगवान उसके घर आ गए। शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।

मतंग ऋषि की मौत के बात शबरी का समय भगवान राम की प्रतीक्षा में बीतने लगा, वह अपना आश्रम एकदम साफ़ रखती थीं। एक दिन शबरी को पता चला कि दो सुंदर युवक उन्हें ढूंढ रहे हैं, वे समझ गईं कि उनके प्रभु राम आ गए हैं। वह भागती हुई अपने राम के पास पहुंची और उन्हें घर लेकर आई और उनके पांव धोकर बैठाया। वह रोज राम के लिए मीठे बेर तोड़कर लाती थी। बेर में कीड़े न हों और वह खट्टा न हो इसके लिए वह एक-एक बेर चखकर तोड़ती थी।

अपने तोड़े हुए मीठे बेर राम को दिए राम ने बड़े प्रेम से वे बेर खाए और लक्ष्मण को भी खाने को कहा। लक्ष्मण को जूठे बेर खाने में संकोच हो रहा था, राम का मन रखने के लिए उन्होंने बेर उठा तो लिए लेकिन खाए नहीं। इसका परिणाम यह हुआ कि राम-रावण युद्ध में जब शक्ति बाण का प्रयोग किया गया तो वे मूर्छित हो गए थे, तब इन्हीं बेर की बनी हुई संजीवनी बूटी उनके काम आयी थी। .

शबरी का आश्रम कहां है?

कर्नाटक में: रामायण में जिस स्‍थान पर शबरी की कुटिया के होने की बात कही गई है वह मतंग ऋषि के आश्रम के पास थी। शबरी मतंग ऋषि के आश्रम में कुटिया बनाकर रहती थी और सभी ऋषि मुनियों की सेवा करती थी। आजकल शबरी की कुटिया को शबरी का आश्रम कहा जाता है, जो कर्नाटक में स्थित है। रामायण के अरण्यकांड में उल्लेख मिलता है कि शबरी के देह त्यागने के बाद राम और लक्ष्मण ने उनका अंतिम संस्कार किया और फिर वे पंपा सरोवर की ओर निकल पड़े।

Pampa Sarovar Hanumanahalli, Karnataka 583227
Pampa Sarovar Hanumanahalli, Karnataka 583227

कर्नाटक में पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है। शबरी या मतंग ऋषि के आश्रम के क्षेत्र को प्राचीनकाल में किष्किंधा कहा जाता था। यहां की नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। केरल का प्रसिद्ध ‘सबरिमलय मंदिर’ तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है। भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है विश्‍व प्रसिद्ध सबरीमाला का मंदिर। यहां हर दिन लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह मंदिर भगवान अयप्पा को समर्पित है जो भगवान शिव और मोहिनी के पुत्र हैं।

रामदुर्ग से 14 किलोमीटर उत्तर में गुन्नगा गांव के पास सुरेबान नाम का वन है जिसे शबरीवन का ही अपभ्रंश माना जाता है। आश्रम के आसपास बेरी वन है। यहां शबरी मां की पूजा वन शंकरी, आदि शक्ति तथा शाकम्भरी देवी के रूप में की जाती है। यहीं श्रीराम व शबरी की भेंट हुई थी। पम्पासरोवर हनुमान हल्ली ऋष्यमूक पर्वत चिंता मणि किष्कंधा द्वार प्रस्रवण पर्वत फटिक शिला सभी किष्किंधा में है। इनमें आपसी दूरी अधिक नहीं है। ये स्थल बिलारी तथा कोपल दो जिलों में आते हैं बीच में तुंगभद्रा नदी है।

कर्नाटक में बैल्‍लारी जिले के हास्‍पेट से हम्‍पी जाकर जब आप तुंगभद्रा नदी पार करते हैं तो हनुमनहल्‍ली गांव की ओर जाते हुए आप पाते हैं शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह स्‍थान जहां शबरी राम को बेर खिला रही है। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध ‘मतंगवन’ था।

छत्तीसगढ़ में: कुछ लोगों का मानना है कि शबरी का आश्रम दंडकारण्य क्षेत्र में अर्थात छत्तीसगढ़ में है। माता शबरी का यह आश्रम छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में स्थित है। महानदी, जोंक और शिवनाथ नदी के तट पर स्थित यह मंदिर प्रकृति के खूबसूरत नजारों से घिरा हुआ है। इस स्थान को पहले शबरीनारायण कहा जाता था जो बाद में शिवरीनारायण के रूप में प्रचलित हुआ। शिवरीनारायण छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले में आता है। यह बिलासपुर से 64 और रायपुर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों ही शहरों से यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है।

गुजरात में : दक्षिण-पश्चिम गुजरात के डांग जिले के आहवा से 33 किलोमीटर और सापुतारा से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर सुबीर गांव के पास स्थित है। माना जाता है कि शबरी धाम वही जगह है जहां शबरी और भगवान राम की मुलाकात हुई थी। शबरी धाम अब एक धार्मिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित होता जा रहा है। यहां ‘शबरी कुम्भ’ आयोजित होत है।

यहां से कुछ ही किलोमाटर की दूरी पर पम्पा सरोवर है। ऐसा माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां हनुमान की तरह शबरी ने भी स्नान किया था। घने जंगल को वही दण्डकारण्य माना जाता है जहां से 14 साल के वनवास के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता गुजरे थे। यहाँ के जनजातीय लोगों की लोककथाएं भगवान राम, सीता और लक्ष्मण से भरी हुई हैं।

रामायण के अनुसार शबरी ने भगवान राम को जंगली बेर खिलाए थे लेकिन इससे पहले उन्होंने इन बेरों को चखकर यह सुनिश्चित कर लिया था कि ये मीठे हैं या नहीं। यहां एक छोटी सी पहाड़ी पर एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है और लोगों का मानना है कि शबरी यहीं रहती थीं। यहां मंदिर के आसपास छोटे-छोटे बेर के पेड़ दिखते हैं। मंदिर में रामायण से जुड़ी और खासतौर पर रामायण के शबरी प्रसंग से जुड़ी तस्वीरें बनी हुई हैं। Wikipedia

Pampa Sarovar

शबरी के पुर्व जन्म की कथा

शबरी अपने पुर्व जन्म में परमहिसी नाम की एक रानी थी। एक बार कुम्भ के मेले में परमहिसी रानी और राजा दोने साथ में गए थे। राजा का वहां पर शिविर था। रानी को एक दिन अपने खिड़की से ऋषियों का समूह दिखा, जो की हवन कर रहे थे, और मन्त्रों का उच्चारण कर रहे थे। रानी परमहिसी का मन भी उन ऋषियों के बीच में बैठने का कर रहा था।

रानी ने राजा से आज्ञा मांगी। लेकिन राजा ने कहा की आप रानी हैं, इस तरह का व्यवहार आपको शोभा नहीं देता। आप उन ऋषियों के बीच में नहीं जा सकती हैं। परमहिसी रानी अपने कक्ष में जाकर रोने लगी। रात्रि को परमहिसी रानी अपने कक्ष से निकल कर त्रिवेणी तट पर गयी, वहां गंगा माँ से याचना करने लगी। हे माते, अगर मुझे दूसरा जन्म मिले तो, रूपवान और रानी मत बनाना। अब आपमें समाना चाहती हूँ। इतना कहकर परमहिसी ने अपना देह त्याग दिया और जल समाधि ले ली। यही रानी अगले जनम में शबरी के रूप में जन्म लिया अगले जन्म में शबरी रूपवान नहीं थी।

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