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बसंत पंचमी में सरस्वती पूजा कैसे करें

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार माघ शुक्ल पंचमी तिथि मंगलवार, 16 फरवरी को है। इस तिथि को शास्त्रों में बसंत पंचमी कहा गया है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस वर्ष 29 जनवरी को ही माघ महीना आरंभ हो गया था। 16 की सुबह 3:36 पर पंचमी तिथि का आरंभ हो रहा है जो 17 फरवरी की सुबह 5:46 तक रहेगा।

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या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रव्रिता। या वीणा वरा दंडमंडित करा या श्वेत पद्मासना ।।
या ब्रह्मच्युत शंकरा प्रभुतिभी देवी सदा वन्दिता। सामा पातु सरस्वती भगवती निशेश्य जाड्या पहा।।

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार माघ शुक्ल पंचमी तिथि मंगलवार, 16 फरवरी को है। इस तिथि को शास्त्रों में बसंत पंचमी कहा गया है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इस वर्ष 29 जनवरी को ही माघ महीना आरंभ हो गया था।
16 की सुबह 3:36 पर पंचमी तिथि का आरंभ हो रहा है जो 17 फरवरी की सुबह 5:46 तक रहेगा।

बसंत पंचमी की तिथि व शुभ मुहूर्त

बसंत पंचमी तिथि: 16 फरवरी 2021
पंचमी तिथि आरंभ मुहूर्त: 16 फरवरी 2021 की सुबह 03 बजकर 36 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्‍ति मुहूर्त: 17 फरवरी 2021 को दोपहर 05 बजकर 46 मिनट तक
सरस्वती पूजा का शुभ मुहुर्त: 16 फरवरी 2021 को सुबह 06:59 से दोपहर 12:35 मिनट तक

मां सरस्वती जी
मां सरस्वती जी

इसी दिन के बाद से सर्दी ऋतु का समाप्त होना शुरू हो जाता है। वहीं, ग्रीष्म यानी गर्मी के मौसम का आगमन हो जाता है। ऐसे में दिन बड़े और रात छोटी होने लगती हैं। वसंत पंचमी का प्रकृति लिहाज से विशेष महत्व होता है। इस दौरान प्रकृति के नए रंग देखने को मिलते हैं, जो लोगों में नई ऊर्जा भरने का कार्य करता है । दरअसल, इस दौरान पेड़-पौधे में नए पत्ते व फल उगने शुरू हो जाते हैं। वहीं पुराने पत्तों का झड़ना भी शुरू हो जाता है।

बसंत पंचमी में सरस्वती पूजा कैसे करें।

सबसे पहले पूजा स्थल पर साफ सफाई कर के, स्नान ध्यान कर के, मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को आसन पर बैठाएं। माता के आसन के नीचे पीला, सफेद या केसरिया रंग का वस्त्र बिछाना चाहिए। माता की पूजा में पीला और सफेद पुष्प का उपयोग ज्यादा होता है। सरस्वती माता को प्रसाद के तौर पर अर्पित करने के लिए बूंदी, खीर, मालपुआ और ऋतु फल यानी इस मौसम में जो फल उपलब्ध हों वह पूजन स्थल पर रखें।

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सबसे पहले दाएं हाथ में जल लेकर मंत्र बोलें।

ओम अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ओम पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

तीन बार हाथ में जल लेकर इस मंत्र को बोलते हुए अपने ऊपर और पूजा के लिए जो भी सामग्री हो उन पर जल छिड़क दें।

अब आचमन करें।

ओम केशवाय नम:, ओम माधवाय नम:, ओम नारायणाय नम:,

फिर हाथ धोएं, पुन: आसन शुद्धि मंत्र बोलें-
ओम पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥

शुद्धि और आचमन के बाद अपने माथे पर चंदन लगाना चाहिए। (अनामिका उंगली से श्रीखंड चंदन लगाते हुए यह मंत्र बोलें ‘चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठतु सर्वदा।’) अब पूजन के लिए संकल्प करें।

हाथ में तिल, फूल, अक्षत मिठाई और फल लेकर ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्या: सरस्वत्या: पूजनमहं करिष्ये।’  इस मंत्र को बोलते हुए हाथ में रखी हुई सामग्री मां सरस्वती के सामने रखें।

अब भगवान गणपति की पूजा करे।

गणपति पूजन विधि

हाथ में फूल लेकर गणपति का ध्यान करें।
मंत्र पढ़ें-
गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।

हाथ में अक्षत लेकर गणपति जी का आह्वान करें । ‘ओम गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ। इतना कहकर पात्र में अक्षत रखें।

जल लेकर बोले।
एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ओम गं गणपतये नम:।
रक्त चंदन लगाएं: इदम रक्त चंदनम् लेपनम् ओम गं गणपतये नम:।

इसी प्रकार श्रीखंड चंदन बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं।

इसके पश्चात सिन्दूर चढ़ाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ओम गं गणपतये नम:।

दूर्वा और बेलपत्र गणेशजी को चढ़ाएं। गणेशजी को लाल या पीले वस्त्र भेंट करें। इदं पीत वस्त्रं ओम गं गणपतये समर्पयामि।

गणेशजी को प्रसाद अर्पित करें। इदं नानाविधि नैवेद्यानि ओम गं गणपतये समर्पयामि:।

मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र: इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ओम गं गणपतये समर्पयामि:।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ओम गं गणपतये नम:।

इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं
इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं
ओम गं गणपतये समर्पयामि:।

अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें , एष: पुष्पान्जलि ओम गं गणपतये नम:

गणपति पूजन की तरह अब सूर्य सहित नवग्रहों की पूजा करें। गणेश के स्थान पर नवग्रहों के नाम लें। इसके बाद जिस प्रकार गणेश जी की पूजा की है उसी तरह से वरूण और इन्द्रादि देवताओं की पूजा करें।

अब सरस्वती पूजन आरंभ करें।

माता सरस्वती का ध्यान करें-
सरस्वती महाभागे, विद्या कमललोचने, विश्वरूपे विशालाक्षी विद्यां देहि विद्यांवरे।

देवी सरस्वती की प्रतिष्ठा करेंः

हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ओम भूर्भुवः स्वः सरस्वती देव्यै इहागच्छ इह तिष्ठ। इस मंत्र को बोलकर अक्षत छोड़ें।

इसके बाद जल लेकर पाद्य और आचमन कराएंः ‘एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं:

ओम मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ओम श्री सरस्वतयै नमः।।

इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूरा भरणं बोलकर देवी को सिन्दूर लगाएं।

‘ओम मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः।
पूजयामि शिवे, भक्तया, सरस्वतयै नमो नमः।।
ओम सरस्वतयै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’

इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।

अब सरस्वती माता को इदं पीत वस्त्र समर्पयामि कहकर पीला वस्त्र पहनाएं। प्रसाद अर्पित करें ।

“इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं सरस्वतयै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें।  मिष्टान अर्पित करने के लिए मंत्र  “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ओम सरस्वतयै समर्पयामि” बोलें।

प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ओम सरस्वतयै नम:।

इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ओम सरस्वतयै समर्पयामि। अब एक फूल लेकर सरस्वती देवी को अर्पित करें और बोलें  एष: पुष्पान्जलि ओम सरस्वतयै नम:।

इसके बाद एक फूल लेकर उसमें चंदन और अक्षत लगाकर किताब कॉपी पर रखें। अंत में सरस्वती माती की आरती करें और प्रसाद वितरण करें।

 

इस प्रकार आपक घर में स्वयं माँ सरस्वती की पूजा कर सकते हैं।

माँ सरस्वती जी की आरती 

जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सद्गुण, वैभवशालिनि, त्रिभुवन विख्याता ।।जय..।।

चन्द्रवदनि, पद्मासिनि द्युति मंगलकारी।
सोहे हंस-सवारी, अतुल तेजधारी।। जय.।।

बायें कर में वीणा, दूजे कर माला।
शीश मुकुट-मणि सोहे, गले मोतियन माला ।।जय..।।

देव शरण में आये, उनका उद्धार किया।
पैठि मंथरा दासी, असुर-संहार किया।।जय..।।

वेद-ज्ञान-प्रदायिनी, बुद्धि-प्रकाश करो।।
मोहज्ञान तिमिर का सत्वर नाश करो।।जय..।।

धूप-दीप-फल-मेवा-पूजा स्वीकार करो।
ज्ञान-चक्षु दे माता, सब गुण-ज्ञान भरो।।जय..।।

माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी, सुखकारी ज्ञान-भक्ति पावे।।जय..।।

 

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