रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

श्रीमद वाल्मीकि रामायण: सम्पूर्ण बालकाण्ड

13,901

बालकाण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दू ग्रंथ रामायण‘ और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस‘ का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।

बालकाण्ड सर्ग तथा श्लोक

वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में प्रथम सर्ग मूलरामायण‘ के नाम से प्रख्यात है। इसमें नारद से वाल्मीकि संक्षेप में सम्पूर्ण रामकथा का श्रवण करते हैं। द्वितीय सर्ग में क्रौञ्चमिथुन का प्रसंग और प्रथम आदिकाव्य की पक्तियाँ मा निषाद‘ का वर्णन है। तृतीय सर्ग में रामायण के विषय तथा चतुर्थ में रामायण की रचना तथा लव कुश के गान हेतु आज्ञापित करने का प्रसंग वर्णित है। इसके पश्चात रामायण की मुख्य विषयवस्तु का प्रारम्भ अयोध्या के वर्णन से होता है। दशरथ का यज्ञतीन रानियों से चार पुत्रों का जन्मविश्वामित्र का राम-लक्ष्मण को ले जाकर बला तथा अतिबला विद्याएँ प्रदान करनाराक्षसों का वधजनक के धनुष यज्ञ में जाकर सीता का विवाह आदि वृतान्त वर्णित हैं। बालकाण्ड में 77 सर्ग तथा 2280 श्लोक प्राप्त होते हैं-

रामायण के बालकाण्ड का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से भी है। बृहद्धर्मपुराण‘ में लिखा है कि अनावृष्टिमहापीड़ा और ग्रहपीड़ा से दु:खित व्यक्ति इस काण्ड के पाठ से मुक्त हो सकते हैं। अत: उक्त कार्यों हेतु इस काण्ड का पारायण भी प्रचलित है।

 

श्रीमद वाल्मीकि रामायण: बालकाण्ड – सम्पूर्ण सर्गों की सूचि

 

बालकाण्ड संक्षिप्त कथा

श्रीरामवतार-वर्णन के प्रसंग में रामायण बालकाण्ड की संक्षिप्त कथा

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं ठीक उसी प्रकार रामायण का वर्णन करूँगाजैसे पूर्वकाल में नारद जी ने महर्षि वाल्मीकि जी को सुनाया था। इसका पाठ भोग और मोक्ष-दोनों को देने वाला है।

देवर्षि नारद कहते हैं- वाल्मीकि जी! भगवान विष्णु के नाभि कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र हैं मरीचि। मरीचि से कश्यपकश्यप से सूर्य और सूर्य से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्वत मनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई। इक्ष्वाकु के वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघुरघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए। उन राजा दशरथ से रावण आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात भगवान विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से श्री रामचन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनों रानियों को यज्ञ सिद्ध चरू दिये थेजिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ।

श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही समान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालने वाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्री रामचन्द्रजी ने वहाँ जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा पायी और ताड़का नाम वाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञ विघातक राक्षस सुबाहु को दल-बल सहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश का धनुष-यज्ञ देखने के लिये गये।

अपनी माता अहिल्या के उद्धार की वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए शतानन्द जी ने निमित्त-कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का  वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्री रामचन्द्र जी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदनन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता कोजिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया थाश्री रामचन्द्र जी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणि ग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश-कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया।

राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्याएँ थीं- श्रुतकीर्ति और माण्डवी। इनमें माण्डवी के साथ भरत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। तदनन्तर राजा जनक से भलीभाँति पूजित हो श्री रामचन्द्र जी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहाँ से प्रस्थान किया। मार्ग में जमदग्निनन्दन परशुराम को जीत कर वे अयोध्या पहुँचे। वहाँ जाने पर भरत और शत्रुघ्न अपने मामा राजा युधाजित की राजधानी को चले गये।

रामायण के बालकाण्ड का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से भी है। ‘बृहद्धर्मपुराण’ में लिखा है कि अनावृष्टि, महापीड़ा और ग्रहपीड़ा से दु:खित व्यक्ति इस काण्ड के पाठ से मुक्त हो सकते हैं। अत: उक्त कार्यों हेतु इस काण्ड का पारायण भी प्रचलित है।

श्रीमद वाल्मीकि रामायण: सम्पूर्ण बालकाण्ड

रघुकुल शिरोमणि मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र के जीवनी लेखक रामायण महाकाव्य के रचयिता महर्षि वाल्मीकि इस पुनीत कार्य को करने के प्रथम व अंतिम अधिकारी थे। वाल्मीकि रामायण के प्रथम बालकांड में अयोध्या अयोध्या वासियों ,अयोध्या की वास्तुकला, सांस्कृतिक आर्थिक ,संपन्नता का जितना सटीक सारगर्भित सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक वर्णन तथ्य अन्वेषी वर्णन किया गया है वह दुरुह कार्य वाल्मीकि जैसा ऋषि ही कर सकता था।

  • अयोध्या कौशल देश की नगरी थी जिसे महाराज मनु ने बसाया था। (श्लोक संख्या 12 तीसरा सर्ग बालकांड)
  • अयोध्या 60 मील लंबी 15 मील चौड़ी आयताकार थी। (श्लोक संख्या 2 तीसरा सर्ग बालकांड)
  • अयोध्या के राज भवनों का रंग सुनहरा था। महाराजा दशरथ के मुख्य राजभवन का रंग सफेद था। अयोध्या नगरी के सभी राजभवन सात मंजिला ऊंचे थे । ( श्लोक संख्या 8 9 10 तीसरा सर्ग)
  • अयोध्या में हमेशा सांस्कृतिक उत्सव होते थे वेद गान प्रतियोगिताएं होती थी स्त्रियों की नाटक समितियां थी। (श्लोक संख्या 11 तीसरा सर्ग)
  • कोई भी अयोध्यावासी कामी क्रोधी कंजूस नहीं था कोई भी ऐसा नहीं था जो बाजूबंद ना पहनता हो सभी के हाथों में सोने के कड़े थे कोई ऐसा मनुष्य नहीं था जो चोरी करता हो या वर्णसंकर हो दीन पागल मानसिक विकलांग कोई नहीं था सभी गृहस्थ धन-धान्य गाय बैल घोड़े से युक्त थे। ( श्लोक संख्या 5, 6 ,7 ,8 चौथा सर्ग)
  • (6) महाराज दशरथ के आठ मंत्री थे जिनके नाम इस प्रकार थे। धरष्टि ,जयंत, विजय, सिद्धार्थ ,अर्थसाधक अशोक, मंत्रपाल, सुमंत्र महाराज दशरथ इनकी सलाह के बगैर कोई कार्य नहीं करते थे। (श्लोक संख्या 5,6, पांचवा सर्ग)
  • (7) वशिष्ठ और वामदेव दो प्रधान ऋत्विक थे।
  • (8) पुत्र प्राप्ति के लिए महाराज दशरथ ने सरयू नदी के किनारे पुत्रष्टि यज्ञ कराया, यज्ञ ऋषि श्रंग ने कराया उनकी पत्नी शांता भी यज्ञ में शामिल रही। ( श्लोक संख्या 10 ,11 छठवां सर्ग )
  • (9) बसंत ऋतु में यह यज्ञ कराया गया । यज्ञ कुंड में सोने के पात्र में पीपल के वृक्ष पर चढ़े हुए खेजड़ी के वृक्ष से निर्मित विशेष पंचांग से निर्मित खीर चारों रानियों को दी गई । छह ऋतु बीतने के पश्चात 12 मास में चैत्र मास की नवमी तिथि में पुनर्वसु नक्षत्र में जब पांच ग्रह सूर्य मंगल बृहस्पति शुक्र सनीचर अपने उच्च स्थान में स्थित थे कर्क लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति के उदय होने पर कौशल्या जी के गर्भ से राम का जन्म हुआ। भरत का जन्म पुष्य नक्षत्र और मीन लग्न में हुआ। लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा नक्षत्र और कर्क लग्न के सूर्य उदय होने पर हुआ सुमित्रा के गर्भ से। (श्लोक संख्या 5 6 7 8 नवम सर्ग)
    (महर्षि वाल्मीकि द्वारा चारों राजकुमारों के जन्म की यह बालकांड में वर्णित यह तिथियां इतना सटीक प्रमाणित वर्णन यह सिद्ध करता है महर्षि वाल्मीकि आदि कवि होने के साथ-साथ खगोलशास्त्री भी थे । )
  • 60 वर्ष की उम्र में महाराज दशरथ को चारों पुत्र की प्राप्ति हुई। (श्लोक संख्या 19 11 वा सर्ग)
  • जन्म के 11 दिन चारों राजकुमारों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ ने कराया।
  • 15 वर्ष की सुकुमार किशोर अवस्था में महर्षि विश्वामित्र विधिवत अध्ययन ऋषि-मुनियों यज्ञ की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को महाराज दशरथ से मांग कर ले गए। श्लोक संख्या (3 13 वा सर्ग)
  • महर्षि विश्वामित्र के सानिध्य में राम लक्ष्मण 10 वर्ष रहे। इन 10 वर्षों के दौरान अधिकतर समय ऋषि मुनियों के यज्ञ की रक्षा में दोनों राजकुमारों का गुजरात 10 वर्षों के दौरान महर्षि विश्वामित्र ने राम को बला ,अति बला नामक विद्या प्रदान की इन विद्याओं से भूख प्यास पर नियंत्रण , थकावट पर विजय, बुखार ना आना संभव हो सका। (श्लोक संख्या 5, 14 वा सर्ग) 
  • महर्षि विश्वामित्र ने राम को सिद्ध आश्रम( आज के बक्सर जनपद छत्तीसगढ़) में वन गमन के दौरान जो अस्त्र दान दिया वह इस प्रकार है। महादिव्य दंडचक्र विद्याचक्र धर्मचक्र कालचक्र विष्णुचक्र प्रचंड इंद्रास्त्र वज्र अस्त्र महादेवस्त्र ब्रह्मासिर अस्त्र, ऐसीख अस्त्र, मोदकी सिखरी नामक दो गदा। धर्मपाश कालपाश वरुणपाश शुष्क और आद्र नामक असनिया ,शिखर ,पैनाक अग्नियास्त्र, वायुअस्त्र हांसीरअस्त्र कंकाल मुसल कपाल कडून नामक शक्तियां। विषाद नंदन अस्त्र, क्रौंचअस्त्र, मानव नाम वाला गंधर्वअस्त्र, सुलाने वाला प्रस्तावन अस्त्र, प्रशमन शोषण वर्शन संतआपन विलापन (रुलाने वाला अस्त्र) कामउत्पादक दुर्दहर्ष , मोहित करने वाला मदनअस्त्र, तामस पैसासांच अस्त्र सोमन अस्त्र संवर्ग शत्रु के तेज को खींचने वाला तेज हरने वाला तेजप्रभ अस्त्र, आदि अस्त्र महर्षि विश्वामित्र ने राम को प्रदान किए। (श्लोक संख्या 1 से लेकर 35 , 16 17 सर्ग)
  • विवाह के समय भगवान श्री राम की आयु 25 वर्ष माता सीता के आयु 18 वर्ष थी यह मनगढ़ंत धारणा है कि सीता और राम का बाल विवाह हुआ था । राम के स्वयंवर की शर्त पूरा करने की जानकारी जनक के दूतों के द्वारा महाराज दशरथ को 4 दिन बाद पता चली। वैदिक काल में विवाह आचार्यों के अधीन होता था अनौपचारिकता के तौर पर माता-पिता की सहमति पश्चात में ली जाती थी। ( श्लोक संख्या 1 2 3, 27 वा सर्ग)
  • महाराज दशरथ चतुरंगनी सेना लेकर धूमधाम से चारों राजकुमारों की बरात लेकर मिथिलापुरी गए थे बरात में शामिल ऋषि वशिष्ठ वामदेव जाबालि कश्यप मार्कंडेय कात्यायन आदि थे। ( श्लोक संख्या 5, 27 सर्ग)
  • मर्यादा पुरुषोत्तम राम सहित चारों राजकुमारों का विवाह जनक के पुरोहित शतानंद ने कराया राम लक्ष्मण की पत्नी माता सीता उर्मिला महाराज जनक की पुत्री थी जबकि भारत शत्रुघ्न की पत्नी मांडवी श्रुतिकीर्ति जनक के छोटे भाई महाराज कुशध्वज की पुत्री थी शंकायपुरी का राजा था। चारों राजकुमारों के विवाह संस्कार में ननिहाल पक्ष से केवल भरत के मामा महान सम्राट अश्व पति के पुत्र युद्धजीत ही शामिल थे जो संयोगवश मिथिला पुरी में आ गए थे। ( श्लोक संख्या 14 15 16 17 31 वा सर्ग)
  • चारों राजकुमारों के विवाह संस्कार के पश्चात महाराज दशरथ ने राजकुमारों की मंगल कामना के लिए मिथिला पुरी में ही बने अपने अस्थाई डेरे पर 400000 गाय सोने कि सिंग जड़ित कांस्य धातु के दोहन पात्र सहित जरूरतमंद लोगों को दान में दी। यह विवाह के अवसर पर वर वधु दोनों पक्ष द्वारा की जाने वाली गोदान की वैदिक परंपरा थी जो महाभारत काल आते-आते लुप्तप्राय हो गई। (श्लोक संख्या 18, 19 31 वा सर्ग)
  • मर्यादा पुरुषोत्तम राम और माता सीता ने विवाह के पश्चात सुख से 12 वर्ष एक साथ अयोध्या राज महल में विहार किया। विवाह के समय मर्यादा पुरुषोत्तम राम की आयु 25 वर्ष तथा वनवास के समय उनकी आयु 37 वर्ष थी। (वाल्मीकि रामायण बालकांड श्लोक संख्या 20 21 36 सर्ग)

उपरोक्त बिंदु आत्मक तथ्य संस्कृत वाल्मीकि रामायण के बालकांड से लिए गए हैं अन्य संस्कृत रामायण के संस्करणों में श्लोक व सर्ग की संख्या आगे पीछे हो सकती है। महर्षि वाल्मीकि का बालकांड अयोध्या, अयोध्या वासियों के वर्णन से शुरू होकर राम के जन्म से लेकर राम के विवाह पर समाप्त हो जाता है।
 

श्रीमद वाल्मीकि रामायण: बालकाण्ड – सम्पूर्ण सर्गों की सूचि

 


श्रीमद वाल्मीकि रामायण (सम्पूर्ण सूचि)
+ श्री वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण अयोध्याकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण अरण्यकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण सुन्दरकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड
+ श्री वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड

टिप्पणियाँ बंद हैं।