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बालकृष्ण और शिव मिलन – जब भोलेनाथ ने लाला के दर्शन किए

जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय भगवान शिव समाधि में लीन थे। जैसे ही उन्हें ज्ञात हुआ कि स्वयं श्रीहरि ब्रज में बालक रूप में अवतरित हुए हैं, उनका हृदय दर्शन की लालसा से भर उठा। शिवजी ने योगी का वेश धारण किया और अपने दो गण — श्रृंगी और भृंगी को साथ लेकर गोकुल की ओर प्रस्थान किया।

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जब श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उस समय भगवान शिव समाधि में लीन थे। जैसे ही उन्हें ज्ञात हुआ कि स्वयं श्रीहरि ब्रज में बालक रूप में अवतरित हुए हैं, उनका हृदय दर्शन की लालसा से भर उठा। शिवजी ने योगी का वेश धारण किया और अपने दो गण — श्रृंगी और भृंगी को साथ लेकर गोकुल की ओर प्रस्थान किया।

गोकुल में शिवजी का आगमन

शिवजी नंदभवन के बाहर पहुँचे और ध्यानमग्न होकर लाला के दर्शन की प्रतीक्षा करने लगे। यशोदा माता को जब ज्ञात हुआ कि एक विचित्र साधु दर्शन की मांग कर रहा है, तो उन्होंने बाहर झाँककर देखा। साधु के गले में साँप, जटाओं में चंद्र, हाथ में त्रिशूल और बाघम्बर था — यह दृश्य उन्हें भयभीत कर गया। उन्होंने लाला को डरने के डर से दर्शन की अनुमति नहीं दी।

शिवजी बोले, “माता, तुम्हारा लाला कोई साधारण बालक नहीं है। वह स्वयं काल का भी काल है। मुझे दर्शन मिले बिना मैं यहाँ से नहीं जाऊँगा।”

शिवजी की तपस्या और लीलाधर की मुस्कान

शिवजी आँगन में ही तप में लीन हो गए। उधर बालकृष्ण अचानक ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे। उन्हें चुप कराने के हर प्रयास विफल रहा। तब शांडिल्य ऋषि ने माता को बताया कि बाहर बैठे साधु कोई साधारण योगी नहीं, स्वयं शिव हैं। माता यशोदा ने बालकृष्ण को सजाया, और अंततः शिवजी को अंदर बुलाया।

जब शिव और कृष्ण की नज़रें मिलीं

जैसे ही शिवजी ने बालकृष्ण के दर्शन किए, उनकी आँखों से आनंद के आँसू बह निकले। कृष्णजी मुस्कराने लगे और यशोदा माता को यह अनुभव हुआ कि यह साधु विशेष है। उन्होंने बालक को शिवजी की गोद में दे दिया।

शिवजी ने लाला की नजर उतारी और लाला को गोद में लेकर नंदभवन के आँगन में नृत्य करने लगे। पूरा नंदगाँव शिवमय हो गया।

आज भी जीवंत है वह स्मृति

आज भी नंदगाँव में नंदभवन के बाहर आशेश्वर महादेव मंदिर और अंदर नंदीश्वर महादेव मंदिर उस दिव्य मिलन की गवाही देते हैं। यह मिलन केवल दो देवों का नहीं, दो चेतनाओं — योगेश्वर श्रीकृष्ण और योगीश्वर शिव — का था।

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