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क्यों विशेष है प्रयाग में होने वाला महाकुम्भ?

इस साल महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा इस बार का कुम्भ बहुत ही विशेष है। वैसे तो कुम्भ का आयोजन हर १२ वर्ष के बाद प्रयागराज में संगम तट पर होता है। लेकिन इस बार का कुम्भ सामान्य कुम्भ नहीं है। इस बार का कुम्भ महाकुम्भ है जो १४४ वर्षो में एक बार आयोजित किया जाता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम है। यहां लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि इससे उनके पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।

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इस साल महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा इस बार का कुम्भ बहुत ही विशेष है। वैसे तो कुम्भ का आयोजन हर १२ वर्ष के बाद प्रयागराज में संगम तट पर होता है। लेकिन इस बार का कुम्भ सामान्य कुम्भ नहीं है। इस बार का कुम्भ महाकुम्भ है जो १४४ वर्षो में एक बार आयोजित किया जाता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम है। यहां लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि इससे उनके पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।

कुंभ मेले से जुड़ी पौराणिक कथा

कुंभ का मतलब होता है घड़ा। इस मेले की शुरुआत की एक अत्यंत हो रोचक कथा है

दोनों के बीच हुए युद्ध को ‘देवासुर संग्राम’ कहते हैं। ऋषि दुर्वासा ने देवताओं को श्राप दिया था, जिससे वे कमजोर हो गए थें। देवता और असुरों के बीच आपस में भयंकर युद्ध हुआ और अंतत: देवताओं की पराजय हुई और स्वर्ग व धरती पर असुरों का साम्राज्य कायम हो गया। देवता और असुर दोनों ही प्रजापति की संतान हैं। असुर राज बलि का राज्य तीनों लोकों पर था। इन्द्र सहित देवतागण उससे(असुर) से भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल भगवान विष्णु ही बता सकते थे, अतः ब्रह्मा जी के साथ समस्त देवता भगवान नारायण के पास पहुचे। उनकी समस्या सुनने के बाद भगवान बोले, कि इस समय तुम लोगों के लिये संकट काल है। दैत्यों, राक्षसों एवं दानवों का अभ्युत्थान हो रहा है और तुम लोगों की अवनति हो रही है,किन्तु संकट काल को मैत्रीपूर्ण भाव से व्यतीत कर देना चाहिये। तुम असुरों से मित्रता कर लो और क्षीर सागर को मथ कर उसमें से अमृत निकाल कर पान कर लो। इस कार्य के लिए तुम्हे असुरों की सहायता की जरुरत पड़ेगी। इस कार्य के लिये उनकी हर शर्त मान लो। अमृत पीकर तुम अमर हो जाओगे और तुममें असुरों को मारने का सामर्थ्य आ जायेगा।

भगवान विष्णु के आदेशानुसार इन्द्र देव ने समुद्र मन्थन से अमृत निकलने की बात असुर राज बलि को बताया। असुरराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया | स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये।

इस समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले।

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमा।
गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगना।
अश्वः सप्तमुखो विषं हरिधनुः शंखोमृतं चाम्बुधे।
रत्नानीह चतुर्दश प्रतिदिनं कुर्यात्सदा मंगलम्।

  1. कालकूट (हलाहल)
  2. ऐरावत
  3. कामधेनु
  4. उच्चैःश्रवा
  5. कौस्तुभ एवं पद्मराग मणि
  6. कल्पवृक्ष
  7. रम्भा नामक अप्सरा
  8. महालक्ष्मी
  9. वारुणी मदिरा
  10. चन्द्रमा
  11. शारंग धनुष
  12. पांचजन्य शंख
  13. धन्वन्तरि
  14. अमृत

जैसे ही अमृत कलश निकला, राक्षस और देवता दोनों उसे पाने के लिए झगड़ने लगे। इस बीच भगवान इंद्र के बेटे जयंत ने अमृत कलश उठाया और वहां से भाग गए। अब राक्षसों ने जयंत का पीछा किया। इस दौरान 12 दिनों तक देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई चली। जयंत अमृत कलश को लेकर भागते रहे और इसी दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिर गईं। इसलिए इन जगहों को पवित्र माना जाता है और यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।

कुंभ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ मेला

अर्द्धकुंभ मेला

अर्द्धकुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक छह वर्ष में एक बार किया जाता है। अर्द्धकुंभ केवल प्रयागराज और हरिद्वार में होता है।

पूर्णकुंभ मेला (कुम्भ मेला )

पूर्णकुंभ मेले का आयोजन 12 वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इस मेले का आयोजन प्रयागराज में संगम तट पर किया जाता है। आखिर बार साल 2013 में यहां पूर्णकुंभ मेले का आयोजन किया गया था।

महाकुंभ मेला

इस साल होने वाला कुंभ महाकुंभ है। जब प्रयागराज में 12 बार पूर्णकुंभ हो जाते हैं, तो उसे एक महाकुंभ का नाम दिया जाता है। महाकुंभ 12 पूर्णकुंभ में एक बार लगता है। महाकुंभ का आयोजन 144 सालों में एक बार होता है।

कैसे तय होता है स्थान एवं तिथि?

सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति को देखकर कुंभ मेले का स्थान तय किया जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। वहीं, जब सूर्य मेष राशि और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं तो कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है। जब सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति ग्रह भी सिंह राशि में होते हैं, तो कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है। जब, सूर्य सिंह राशि और बृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन नाशिक में किया जाता है।

हर 12 साल में ही क्यों होता है महाकुंभ?

अब सवाल आता है कि कुंभ मेला हर 12 साल में ही क्यों होता है। दरअसल, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जयंत को अमृत कलश लेकर स्वर्ग पहुंचने में 12 दिन लगे थे। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक साल के बराबर होता है। इसलिए कुंभ मेला 12 साल के अंतराल पर मनाया जाता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है। यह आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम है। यहां लाखों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने आते हैं। मान्यता है कि इससे उनके पाप धुल जाते हैं और जीवन में सफलता मिलती है।

प्रयागराज महाकुम्भ मेला २०२५

इस साल महाकुम्भ में साढ़े पांच करोड़ रुद्राक्ष से 12 ज्योतिर्लिंग का स्वरूप तैयार किया जा रहा है

महाकुम्भ में साढ़े पांच करोड़ रुद्राक्ष से 12 ज्योतिर्लिंग का स्वरूप तैयार किया जा रहा है। इसे तैयार करने में डमरू सहित 11 हजार त्रिशूल का भी इस्तेमाल होगा। इसका प्रारंभिक ढांचा तैयार कर लिया गया है। पहले स्नान से पूर्व सभी 12 ज्योतिर्लिंग तैयार कर लिए जाएंगे, जो महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं के आकर्षण का मुख्य केंद्र होंगे।

यह अनूठा ज्योतिर्लिंग अमेठी स्थित संत परमहंस आश्रम के महाकुम्भ सेक्टर छह स्थित शिविर में बनाया जा रहा है। इनका शिविर नागवासुकी मंदिर के सामने है। इसके लिए नेपाल और मलेशिया से रुद्राक्ष मंगवाए गए हैं। जो सात दिनों में यहां आ जाएंगे। प्रत्येक ज्योतिर्लिंग की चौड़ाई नौ फीट और ऊंचाई 11 फीट की होगी। इसमें प्रयोग हो रहे 11 हजार त्रिशूलों को सफेद, काले, पीले और लाल रंग से रंगा गया है।12 जनवरी तक 12 ज्योतिर्लिंग के निर्माण का कार्य पूरा हो जाएगा और 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी के बीच श्रद्धालु इनका दर्शन व पूजन-अर्चन कर सकेंगे। आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्मचारी मौनी बाबा बताते हैं कि संगम की रेती सदियों से सनातन संस्कृति के लिए पावन भूमि रही है। शिविर में स्थापित किए जा रहे 12 ज्योतिर्लिंग के माध्यम से अखंड भारत और विश्व के कल्याण की कामना की जा रही है।

महाकुंभ में 6 शाही स्नान

पहला स्नान- पौष पूर्णिमा 13 जनवरी 2025 को महाकुंभ की शुरुआत के साथ ही पहला शाही स्नान होगा।
दूसरा शाही स्नान- मकर संक्रांति यानी 14 जनवरी 2025 को दूसरा शाही स्नान होगा।
तीसरा शाही स्नान- मौनी अमावस्या 29 जनवरी 2025 को तीसरा शाही स्नान होगा।
चौथा शाही स्नान- बसंत पंचमी यानी 3 फरवरी 2025 को चौथा शाही स्नान होगा।
पांचवां शाही स्नान- माघी पूर्णिमा पर 12 फरवरी 2025 को पांचवां शाही स्नान होगा।
छठा शाही स्नान- महाशिवरात्रि और महाकुंभ के अंतिम दिन 26 फरवरी 2025 छठा शाही स्नान होगा।

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