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बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग: एकमात्र शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग का संगम

क्या आप जानते हैं? बाबा बैद्यनाथ धाम भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है जो ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों का संगम है।
यहां रावण की घोर तपस्या, भगवान शिव की कृपा, सती का हृदयपात और चंद्रकांत मणि की अद्भुत महिमा — सभी का संगठित इतिहास छुपा है।

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बाबा बैद्यनाथ धाम का परिचय

झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से नवां है।
यह स्थान इतना पवित्र है कि इसे देवताओं का घरदेवघर कहा जाता है।

यहाँ की विशेषता यह है कि यह स्थल शक्तिपीठ भी है।
कहा जाता है कि यहाँ माता सती का ह्रदय गिरा था, इसलिए इसे “हाद्रपीठ” कहा जाता है।

इसे कई नामों से जाना जाता है:
हरितकी वन, चिताभूमि, रणखंड, रावणेश्वर कानन, और कामना लिंग


पौराणिक प्रमाण और श्लोक

शिवपुराण में लिखा गया है कि बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग चिताभूमि में स्थित है —
वहीं स्थान जहाँ भगवान शिव ने माता सती के हृदय का दाह संस्कार किया था।

शिव पुराण के श्लोक अनुसार:

बैद्यनाथावतारो हि नवमस्तत्र कीर्तित:।
आविर्भूतो रावणार्थं बहुलीलाकर: प्रभु:।।

ज्योतिर्लिंगस्वरूपेण चिताभूमौ प्रतिष्ठित:।
बैद्यनाथेश्वरो नाम्ना प्रसिद्धोऽभूज्जगत्त्रये।।


रावण और बाबा बैद्यनाथ – एक भक्त की गाथा

राक्षसराज रावण ने भगवान शिव को लंका ले जाने के उद्देश्य से घोर तप किया।
उसने अग्नियों के मध्य बैठकर तप, बारिश में खुले में और ठंड में पानी के भीतर खड़े होकर साधना की।

पर जब शिवजी प्रसन्न नहीं हुए, तो उसने अपने नौ सिर काटकर चढ़ा दिए।
दसवां सिर भी चढ़ाने ही वाला था कि भगवान शिव प्रकट हुए और प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा।

रावण ने कहा,
“हे देवाधिदेव, आप मुझे अपने साथ लंका चलने की अनुमति दें।”

भगवान शिव ने कहा कि
“यदि तुम रास्ते में इस लिंग को धरती पर रखोगे तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।”


विष्णु का बैजू रूप और शिवलिंग की स्थापना

देवताओं ने चिंतित होकर भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
विष्णु ने एक ग्वाले ‘बैजू’ का रूप धारण कर लिया और वही रावण को रास्ते में मिला।

रावण को लघुशंका हुई, तो उसने शिवलिंग बैजू को सौंप दिया।
बैजू ने शिवलिंग को ज़मीन पर रख दिया और लिंग वहीं अचल हो गया।

रावण जब लौटा तो वह क्रोधित हुआ और शिवलिंग पर अंगूठा गाड़ दिया
यह वही शिवलिंग है जो आज बैद्यनाथ धाम के रूप में पूजनीय है।


बैद्यनाथ से जुड़ी अन्य कथाएँ

पुलस्त्य वंश की कथा

पुलस्त्य ऋषि के पुत्रों में रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और कुबेर का जन्म हुआ।
रावण को शिव से दो लिंग प्राप्त हुए — एक बैद्यनाथ और दूसरा चन्द्रभाल कहलाया।

चरवाहा बैजू की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने बैद्यनाथ लिंग को कामना लिंग बना दिया।


शिव – वैद्यनाथ के रूप में

एक कथा के अनुसार, शिव ने स्वयं को वैद्य (चिकित्सक) रूप में प्रकट किया और
अपने ससुर दक्ष का सिर काटकर, फिर बकरे का सिर जोड़कर पुनर्जीवित किया।

इसी कारण शिव को बैद्यनाथ कहा गया और भक्त शिव को ब.ब.ब… ध्वनि में पूजते हैं।


मंदिर की स्थापत्य कला और रहस्य

  • मंदिर की ऊंचाई: 72 फीट

  • निर्मित: भगवान विश्वकर्मा द्वारा (विश्वकथा अनुसार)

  • त्रिशूल के स्थान पर पंचशूल – पांच विकारों से रक्षा (काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या)

  • मंदिर में एक ही प्रवेश और निकास द्वार

  • मुख्य गर्भगृह में चंद्रकांत मणि – जिससे जल की बूंदें स्वतः शिवलिंग पर टपकती हैं

  • शिवलिंग: बेलनाकार, व्यास लगभग 5 इंच, नीचे का आधार 8 इंच


चंद्रकांत मणि – दिव्यता का प्रतीक

मान्यता है कि चंद्रकांत मणि से जल की बूँदें शिवलिंग पर दिन-रात टपकती रहती हैं,
जिससे स्वाभाविक जलाभिषेक होता है। यह मणि 1962 में खुदाई के दौरान खोजी गई थी।


महाशिवरात्रि की विशेष परंपराएँ

  • पंचशूल उतारने की परंपरा

  • बाबा बैद्यनाथ और माता पार्वती के बीच गठबंधन का नवीनीकरण

  • गठबंधन के लाल वस्त्र को पाने के लिए हज़ारों भक्तों की भीड़


बैद्यनाथ: श्रद्धा, शक्ति और शिव का संगम

बाबा बैद्यनाथ धाम केवल एक तीर्थस्थल नहीं,
बल्कि शिव और शक्ति, भक्ति और विज्ञान, कथा और रहस्य का अनुपम संगम है।

यहाँ आकर न केवल मनोकामनाएँ पूरी होती हैं,
बल्कि भक्त अद्वितीय आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं।

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