५१ शक्तिपीठ: माँ शक्ति की दिव्य स्थलों की अद्भुत यात्रा
भारत की धार्मिक चेतना में शक्ति की उपासना का विशेष स्थान है। देवी माँ की पूजा न केवल ऊर्जा के रूप में, बल्कि सृष्टि की आधारशिला के रूप में भी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माँ सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ये शक्तिपीठ न केवल तीर्थ स्थल हैं, बल्कि साधना और श्रद्धा के परम केंद्र हैं, जहाँ भक्तों को माँ के साक्षात् दर्शन का अनुभव होता है।
यहाँ हम आपको लेकर चल रहे हैं एक आध्यात्मिक यात्रा पर – ५१ शक्तिपीठों की यात्रा, जिनकी कथा, महत्व और दिव्यता आज भी भक्तों के हृदय में गूँजती है।
भारत की धार्मिक चेतना में शक्ति की उपासना का विशेष स्थान है। देवी माँ की पूजा न केवल ऊर्जा के रूप में, बल्कि सृष्टि की आधारशिला के रूप में भी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माँ सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। ये शक्तिपीठ न केवल तीर्थ स्थल हैं, बल्कि साधना और श्रद्धा के परम केंद्र हैं, जहाँ भक्तों को माँ के साक्षात् दर्शन का अनुभव होता है।
यहाँ हम आपको लेकर चल रहे हैं एक आध्यात्मिक यात्रा पर – ५१ शक्तिपीठों की यात्रा, जिनकी कथा, महत्व और दिव्यता आज भी भक्तों के हृदय में गूँजती है।
शक्ति की आराधना वैदिक काल से भी पूर्व की मानी जाती है। “शक्ति” केवल एक देवी नहीं, बल्कि वह आदिशक्ति है जिससे संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार होता है।
माँ सती की कथा और शक्तिपीठों की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार, सती देवी भगवान शिव की पत्नी थीं और दक्ष प्रजापति की पुत्री। एक बार दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। सती अपने पिता के यज्ञ में बिना बुलाए पहुँचीं, जहाँ उन्हें अपने पति का अपमान सहन करना पड़ा। अपमान से व्यथित होकर सती ने वहीं यज्ञ अग्नि में अपने प्राण त्याग दिए।
जब शिव को यह समाचार मिला, वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर उठाया और तांडव करना प्रारंभ किया। यह देख कर समस्त ब्रह्मांड विचलित हो गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जहाँ-जहाँ सती के अंग, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
शक्तिपीठ क्या है?
शक्तिपीठ उन स्थानों को कहा जाता है जहाँ माँ सती के शरीर के भाग गिरे थे। प्रत्येक शक्तिपीठ पर माँ शक्ति एक विशेष रूप में विराजमान हैं और उनके साथ भगवान शिव भी भैरव के रूप में स्थित हैं। ये स्थल संपूर्ण भारत (और कुछ अन्य देशों) में फैले हुए हैं और आज भी तांत्रिक साधना, शक्ति उपासना और आध्यात्मिक अनुभवों के लिए प्रसिद्ध हैं।
शक्तिपीठों की उपासना केवल फल प्राप्ति की याचना नहीं है। यह आत्मशक्ति, आत्म-शुद्धि और देवी से एकात्म की प्रक्रिया है। हर शक्तिपीठ में माँ सती का एक विशिष्ट अंग गिरा, जिससे वहाँ की ऊर्जा विशिष्ट बन गई। इसलिए हर शक्तिपीठ एक ऊर्जा केंद्र (Energy Vortex) है, जहाँ ध्यान, साधना और आस्था से व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से ऊँचाइयाँ प्राप्त कर सकता है।
शक्तिपीठ किसी धर्म या संप्रदाय से परे, एक दिव्य कंपन (vibration) का स्थल है – जहाँ जाने मात्र से ही मन शांत हो उठता है और आत्मा माँ के चरणों में समर्पित हो जाती है।
शक्तिपीठों की संख्या
शास्त्रों में शक्तिपीठों की संख्या अलग-अलग बताई गई है – कुछ ग्रंथों में ४, १८, ५१, ५२ और यहाँ तक कि १०८ शक्तिपीठों का भी उल्लेख मिलता है। परंतु सर्वाधिक मान्यता ५१ शक्तिपीठों को दी गई है, जो भारत, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में स्थित हैं।
शक्तिपीठों की विशेषता
हर शक्तिपीठ का एक अलग नाम, कथा, देवी और भैरव रूप है। कहीं माँ का “हृदय” गिरा, तो कहीं “नेत्र”, कहीं “चूड़ामणि”, कहीं “दायाँ पाँव”। उदाहरण के लिए:
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कामाख्या शक्तिपीठ (असम) – यहाँ देवी का योनिभाग गिरा था। यह तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र है।
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वैष्णो देवी (जम्मू) – शक्ति की त्रिरूपा – महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती – यहाँ पूजित हैं।
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माँ कालीघाट (कोलकाता) – माँ का दाहिना अँगूठा यहाँ गिरा था।
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हिंगलाज शक्तिपीठ (पाकिस्तान) – यह सबसे प्राचीन शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी का ब्राह्मरंध्र गिरा था।
भारत और विश्व के ५१ शक्तिपीठों की सूची
शास्त्रों के अनुसार, जहाँ-जहाँ माँ सती के अंग, वस्त्र, या आभूषण गिरे थे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना हुई। नीचे ५१ प्रमुख शक्तिपीठों की सूची दी गई है:
क्रम | शक्तिपीठ का नाम | स्थान | देवी का रूप | भैरव | गिरा हुआ अंग |
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1 | कामाख्या | गुवाहाटी, असम | कामाख्या | उन्मत्त भैरव | योनि भाग |
2 | तारा तारिणी | ब्रह्मपुर, ओडिशा | तारा तारिणी | कंबुकै भैरव | स्तन |
3 | कालिका | कालीघाट, कोलकाता | काली | नकुलेश्वर | दायाँ पैर का अंगूठा |
4 | शोणितपुर | तेजपुर, असम | देवी शोणितेश्वरी | महाभैरव | नाक |
5 | ब्रह्मरंध्र | हिंगलाज, पाकिस्तान | हिंगलाज भवानी | भैरव चंद्र | ब्रह्मरंध्र |
6 | ज्वालामुखी | हिमाचल प्रदेश | ज्वाला देवी | अनद भैरव | जिह्वा |
7 | वैष्णो देवी | जम्मू | महालक्ष्मी | कलभैरव | दायाँ हाथ |
8 | चंडी | कानपुर, उत्तर प्रदेश | चंडी | लांको भैरव | बाईं आँख |
9 | नंदिनी | लाहौर (अब पाकिस्तान) | नंदिनी | नंदिकेश्वर | कंठ |
10 | हिंगुला | बलूचिस्तान, पाकिस्तान | हिंगुला | भीमलोचन | बाएं कंधे |
11 | श्रीशैल | आंध्र प्रदेश | महालक्ष्मी | मलिकाजुर्न | गर्दन |
12 | पूर्णगिरि | उत्तराखंड | पूर्णेश्वरी | विशालाक्ष | नाभि |
13 | माता सुंदरी | अजनाला, पंजाब | सुंदरी देवी | त्रिलोचन | डायफ्राम |
14 | शंकरपुर | नेपाल | नारायणी | संगविंद | नाभि |
15 | विंध्यवासिनी | विंध्याचल, उत्तर प्रदेश | विंध्यवासिनी | भैरव रूद्र | दायाँ कंधा |
16 | महालक्ष्मी | कोल्हापुर, महाराष्ट्र | महालक्ष्मी | कुष्मांडा | नेत्र |
17 | महाकाली | उज्जैन, मध्यप्रदेश | महाकाली | बटुक भैरव | ऊर्ध्व अधर (ऊपरी होंठ) |
18 | मानसा देवी | हरिद्वार | मानसा देवी | चेतन भैरव | ललाट |
19 | भवानी | तुलजापुर, महाराष्ट्र | भवानी | वैरभद्र | नाक का छोर |
20 | योगमाया | दिल्ली | योगमाया | भैरव | अंग का छोर |
21 | अट्टहास | पश्चिम बंगाल | फूलमालिनी | शिव | होंठ |
22 | बहरामपुर | ओडिशा | जयचंडी | त्रिभुवन भैरव | दांत |
23 | बीरजाक्षी | बक्सर, बिहार | बीरजाक्षी | शिवानंद | बाँयी जांघ |
24 | गंधकी | नेपाल | गंधकी चंडी | महेश्वर | कर्ण (कान) |
25 | कमरूपेश्वरी | गुवाहाटी, असम | देवी कमरूप | उन्मत्त | नाभि |
26 | नलहटी | पश्चिम बंगाल | देवी नलहेश्वरी | भैरव | नासिका |
27 | कंचुला | नंदा देवी, उत्तराखंड | नंदा | सुब्रह्मण्यम | गला |
28 | त्रिपुरा सुंदरी | त्रिपुरा | त्रिपुरासुंदरी | त्रिपुरेश | दाँयी जांघ |
29 | मां बगुलामुखी | दतिया, मध्यप्रदेश | बगुलामुखी | भैरव | जीभ |
30 | किरातिन | असम | किरातेश्वरी | भीमेश्वर | नाभि |
31 | भीमेश्वरी | भुवनेश्वर, ओडिशा | भीमेश्वरी | कपाली भैरव | कमर |
32 | कुरुक्षेत्र | हरियाणा | देवी भद्रकाली | समवेद भैरव | टखना |
33 | जालंधर | पंजाब | देवी ज्वालेश्वरी | बटुक भैरव | बांया स्तन |
34 | नवद्वीप | पश्चिम बंगाल | देवी भुवनेश्वरी | भैरव | जांघ |
35 | रत्नेश्वरी | रत्नेश्वर, नेपाल | देवी रत्नेश्वरी | रत्न भैरव | दाँत |
36 | शिवशक्ति | केरल | देवी शिवशक्ति | शिव भैरव | कमर |
37 | गांधार | अफगानिस्तान | देवी महेश्वरी | भैरव | टखना |
38 | शिलाटुंग | मणिपुर | शिलाटुंग देवी | भैरव | पीठ |
39 | श्रीहट्ट | बांग्लादेश | देवी जयांती | भैरव | बायाँ हाथ |
40 | त्रिस्रोत | जम्मू | देवी त्रिस्रोता | शिव | दाहिनी जांघ |
41 | सुगंधा | बांग्लादेश | देवी सुगंधा | त्रिलोचन | नाक |
42 | करवीर | कोल्हापुर | महालक्ष्मी | भैरव | नेत्र |
43 | वाराही | तमिलनाडु | देवी वाराही | वराह भैरव | सिर |
44 | मनसा देवी | चंडीगढ़ | देवी मनसा | भैरव | हाथ |
45 | नैनादेवी | हिमाचल | देवी नैना | भैरव | नेत्र |
46 | सप्तरषि | जम्मू | सप्तश्रृंगी देवी | भैरव | दायाँ हाथ |
47 | मेरू | तिब्बत | देवी महामाया | महेश्वर | कमर |
48 | प्रभास | सोमनाथ, गुजरात | देवी चंद्रभागा | भीम भैरव | स्तन |
49 | बहुला | पश्चिम बंगाल | देवी बहुला | भैरव | बायाँ कंधा |
50 | यशोरेश्वर | बांग्लादेश | देवी यशोरेश्वर | शिव | बायाँ पंजा |
51 | मंदार | बिहार | देवी मंदारेश्वरी | भैरव | हृदय |
इन 51 शक्तिपीठो में से कई की मान्यता अष्टादश महाशक्ति पीठ के रूप में भी है
जहाँ ५१ शक्तिपीठ माँ सती के शरीर के अंगों के पृथ्वी पर गिरने से उत्पन्न हुए थे, वहीं अष्टादश महाशक्ति पीठ (18 Maha Shakti Peethas) उन विशिष्ट स्थलों को कहा गया है, जिनका उल्लेख स्वयं आदि शंकराचार्य और विभिन्न पुराणों में हुआ है। ये वे प्रमुख शक्तिपीठ हैं जो धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माने गए हैं।
इनके बारे में आप अलग लेख में पढ़ेंगे। जाने अष्टादश महाशक्ति पीठ के बारे में
आध्यात्मिक महत्व
शक्तिपीठ न केवल पूजा के स्थल हैं, बल्कि आत्म-साक्षात्कार, साधना, ध्यान और ऊर्जा प्राप्ति के केंद्र भी हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु न केवल धर्मिक पुण्य अर्जित करते हैं, बल्कि माँ शक्ति की कृपा से जीवन के संकटों से भी उबरते हैं।
शक्तिपीठ यात्रा का महत्व
भारत में शक्तिपीठ यात्रा को अत्यधिक पवित्र माना गया है। यह नवरात्रों, चैत्र माह, आश्विन नवरात्रि, गुप्त नवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर की जाती है। कई श्रद्धालु जीवन में एक बार सभी शक्तिपीठों की यात्रा करने की कामना रखते हैं।
इस लेख में हमने ५१ शक्तिपीठों का समग्र परिचय प्रस्तुत किया है। अगले चरण में हम हर शक्तिपीठ की विस्तृत कथा, वहाँ का इतिहास, देवी और भैरव का स्वरूप, मंदिर की स्थापत्य कला और भक्तों के अनुभवों के बारे में लिखेंगे।
आप हमारी अगली पोस्ट में पढ़ पाएँगे:
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कामाख्या शक्तिपीठ की कथा
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माँ ज्वालामुखी शक्तिपीठ का रहस्य
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माँ ब्रह्मरानी (बैजनाथ धाम) शक्तिपीठ की महिमा
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और अन्य सभी ५१ शक्तिपीठों की अलग-अलग कहानियाँ
शक्तिपीठ केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, ऊर्जा और शक्ति का सजीव प्रतीक हैं। इन स्थलों पर जाकर भक्तों को जिस आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव होता है, वह जीवन को एक नई दिशा दे सकता है। माँ शक्ति की कृपा आप पर बनी रहे।
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