बिरजा मंदिर, जाजपुर
एकमात्र शक्तिपीठ जहां होता है पिंडदान
ओडिशा के जाजपुर में स्थित बिरजा मंदिर (Biraja Temple) न केवल एक प्राचीन शक्तिपीठ है, बल्कि यह भारत का एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ भी है जहां पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है। यह मंदिर देवी सती के नाभि के स्थान पर बना हुआ है और इसे बिरजा क्षेत्र शक्तिपीठ (Biraja Kshetra Shakti Peeth) कहा जाता है।
ओडिशा का अद्वितीय शक्तिपीठ
भारतवर्ष में शक्ति की आराधना का विशेष महत्व है। देशभर में फैले 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख स्थल है ओडिशा के जाजपुर जिले में स्थित बिरजा मंदिर (Biraja Temple Jajpur)। यह मंदिर न सिर्फ देवी सती के शक्तिपीठों में गिना जाता है, बल्कि इसकी सबसे खास बात यह है कि यह भारत का एकमात्र शक्तिपीठ है जहां पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है।
यहां देवी बिरजा को महिषासुर मर्दिनी के रूप में पूजा जाता है और चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान यहां भव्य श्रृंगार, धार्मिक अनुष्ठान और पिंडदान का आयोजन होता है।
बिरजा मंदिर का स्थान और परिवेश
बिरजा मंदिर ओडिशा राज्य के जाजपुर जिले में स्थित है, जो भुवनेश्वर से लगभग 125 किलोमीटर की दूरी पर है। यह मंदिर बैतरणी नदी के तट पर स्थित है, जिसे ‘वज्रा नाभि क्षेत्र’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि यही वह पवित्र स्थल है जहां देवी सती की नाभि गिरी थी, और इसलिए यह स्थान “नाभिगया तीर्थ” के नाम से प्रसिद्ध है।
बिरजा मंदिर की पौराणिक पृष्ठभूमि
शक्ति की उत्पत्ति और पिंडदान का महत्व
शिवपुराण और देवी भागवत के अनुसार, जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के अपमान से क्षुब्ध होकर यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया, तब भगवान शिव शोकमग्न होकर उनके शव को लेकर ब्रह्मांड में घूमने लगे। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित किया और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
जाजपुर वह स्थान है जहां देवी की नाभि गिरी थी, और यही कारण है कि यहां पिंडदान की परंपरा भी जुड़ी है। कहा जाता है कि जो भक्त यहां अपने पितरों का पिंडदान करता है, उसके सात जन्मों तक के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
बिरजा मंदिर का स्थापत्य और इतिहास
प्राचीन काल से आधुनिक युग तक
बिरजा मंदिर का प्रारंभिक निर्माण गुप्तकाल (4वीं-5वीं शताब्दी) में हुआ माना जाता है। हालांकि इसका वर्तमान स्वरूप 13वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी के बीच के पुनर्निर्माणों का परिणाम है।
1568 में अफगान सेनापति काला पहाड़ ने मंदिर को नष्ट कर दिया था। इसके बाद 18वीं शताब्दी में एक विद्वान पंडित त्र्यम्बक अग्निहोत्री ने देवी की टूटी हुई मूर्ति को एक कुएं से निकालकर पुनः प्रतिष्ठित किया।
मंदिर की अद्भुत वास्तुकला
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मंदिर में देवी बिरजा की आठ भुजाओं वाली प्रतिमा है, जो महिषासुर का वध करते हुए दिखाई देती हैं।
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उनके मुकुट पर भगवान गणेश, शिवलिंग, अर्धचंद्र और नागराज की आकृति उकेरी गई है।
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मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो विशाल शेरों की मूर्तियाँ हैं, जो शक्ति और रक्षण का प्रतीक मानी जाती हैं।
मां बिरजा की पूजा और धार्मिक मान्यता
महिषासुर मर्दिनी रूप में देवी की आराधना
देवी बिरजा को शक्ति का साक्षात रूप माना जाता है। उनका स्वरूप महिषासुर मर्दिनी के रूप में है, जिसमें वह असुर का वध करती हुई दिखाई देती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में देवी की पूजा करने से न केवल भौतिक इच्छाएं पूरी होती हैं, बल्कि आत्मा को भी शांति और मोक्ष मिलता है।
108 शिवलिंगों की स्थापना
यह मंदिर न सिर्फ शक्ति उपासना का स्थल है, बल्कि शिव भक्ति का भी केंद्र है। यहां 800 वर्षों से अधिक पुराने 108 शिवलिंग स्थापित हैं, जहां भक्त जल अर्पण करते हैं।
विशेष पर्व और उत्सव
नवरात्र में विशेष श्रृंगार और अनुष्ठान
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चैत्र नवरात्र में प्रतिदिन देवी को 15 साड़ियों और स्वर्ण आभूषणों से श्रृंगारित किया जाता है।
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शारदीय नवरात्र में यह संख्या 30 साड़ियों तक पहुंच जाती है।
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दोपहर में साग-रबड़ी का भोग और रात को आलू का भरता व दूध अर्पित किया जाता है।
अन्य प्रमुख त्योहार
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त्रिवेणी अमावस्या (जनवरी-फरवरी) – देवी का जन्मदिवस।
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डोला पूर्णिमा (फरवरी-मार्च) – रंगों और उल्लास का पर्व।
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व्रुई महोत्सव (मार्च-अप्रैल) – तांत्रिक अनुष्ठानों से युक्त उत्सव।
दर्शनीय स्थल और पर्यटन
बिरजा मंदिर के आस-पास घूमने योग्य स्थल:
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जगन्नाथ पुरी मंदिर, पुरी
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कोणार्क सूर्य मंदिर, कोणार्क
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रत्नागिरी व ललितगिरी, प्राचीन बौद्ध स्थल
मंदिर दर्शन का समय
समय | विवरण |
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सुबह दर्शन | 6:00 AM – 1:30 PM |
दोपहर विश्राम | 1:30 PM – 3:00 PM |
संध्या दर्शन | 3:00 PM – 8:30 PM |
ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्त्व का संगम
बिरजा मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत, तांत्रिक साधना, वैदिक परंपरा, और पूर्वजों के मोक्ष का केंद्र है। यह मंदिर उन श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो शक्ति, शिव और आत्मिक शांति तीनों की प्राप्ति चाहते हैं।
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