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मूर्ति, प्रतिमा या विग्रह? जानिए देवी-देवताओं से जुड़ी मंदिर वास्तु और विज्ञान की गहराई

हमारे मंदिरों में जो दिव्य स्वरूप विराजमान हैं — उन्हें कभी मूर्ति, कभी प्रतिमा, तो कभी विग्रह कहा जाता है। लेकिन क्या ये तीनों शब्द एक ही चीज़ के लिए हैं?

उत्तर है — नहीं।

इनके पीछे गहरे दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक अर्थ छिपे हैं, जिन्हें समझना भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की यात्रा जैसा है।

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हमारे मंदिरों में जो दिव्य स्वरूप विराजमान हैं — उन्हें कभी मूर्ति, कभी प्रतिमा, तो कभी विग्रह कहा जाता है। लेकिन क्या ये तीनों शब्द एक ही चीज़ के लिए हैं?

उत्तर है — नहीं।

इनके पीछे गहरे दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक अर्थ छिपे हैं, जिन्हें समझना भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा की यात्रा जैसा है।

मूर्ति, प्रतिमा और विग्रह में क्या अंतर है?

  • मूर्ति: कोई भी आकार या रूप जिसमें किसी तत्व को दर्शाया गया हो।

  • प्रतिमा: एक प्रतीकात्मक मूर्ति — जो किसी विचार, भावना या दिव्यता को दर्शाती है।

  • विग्रह: वह मूर्ति जो पूजन योग्य हो और जिसमें देवत्व प्रतिष्ठित हो — प्राण-प्रतिष्ठा द्वारा।

जब कोई मूर्तिकार मंदिर के लिए एक स्वरूप बनाता है, और उसमें देवता की ऊर्जा को विशेष वैदिक अनुष्ठानों द्वारा स्थापित किया जाता है, तो वह सामान्य मूर्ति न रहकर ‘विग्रह’ बन जाती है।

क्या मूर्ति में देवता होते हैं? | यजुर्वेद का रहस्य

यजुर्वेद का एक प्रसिद्ध मंत्र है:

“न तस्य प्रतिमा अस्ति”
अर्थात् — “उस परमात्मा की कोई प्रतिमा नहीं हो सकती।”

इसका अभिप्राय यह है कि परमात्मा अनंत, निराकार और सभी सीमाओं से परे है। कोई भी मूर्ति उसे संपूर्ण रूप से व्यक्त नहीं कर सकती, परंतु भक्ति के माध्यम से हम उस अनंत को एक सीमित रूप में अनुभव कर सकते हैं।

प्राण-प्रतिष्ठा का महत्व

मूर्ति जब तक केवल पत्थर या धातु की बनी है, वह श्रृंगार का एक रूप है। लेकिन जब उसमें वैदिक मंत्रों द्वारा देवत्व का आह्वान किया जाता है, तो वह ‘विग्रह’ बन जाती है — एक जीवंत उपस्थिति।

इस प्रक्रिया को प्राण-प्रतिष्ठा कहा जाता है।

कुछ स्वयंभू विग्रह होते हैं — जैसे शालिग्राम, ज्योतिर्लिंग आदि — जिनमें पहले से ही दिव्य ऊर्जा होती है, अतः इन्हें प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।

घरों और मंदिरों की पूजा में अंतर

  • मंदिरों में पूजा विधिपूर्वक, नियमबद्ध और पूरे समुदाय के लिए होती है।

  • घरों में पूजा व्यक्ति विशेष की श्रद्धा और सुविधाओं के अनुसार की जाती है।

भले ही घर में विधियाँ सरल हों, परंतु यदि श्रद्धा गहरी हो — तो ईश्वर की उपस्थिति भी उतनी ही गहन हो सकती है।

मंदिर वास्तु: विज्ञान और ऊर्जा का संगम

भारत के मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि ऊर्जा केंद्र (Energy Hubs) होते हैं। उनका निर्माण खास ज्योमेट्री, दिशा, और खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है।

भारतीय मंदिर तीन प्रमुख स्थापत्य शैलियों में निर्मित होते हैं:

  1. नागर शैली – उत्तर भारत में

  2. द्रविड़ शैली – दक्षिण भारत में

  3. वेसरा शैली – उत्तर व दक्षिण की संकर शैली (दक्कन क्षेत्र)

खास बात: हर मंदिर के गर्भगृह में एक शक्तिशाली ‘श्री यंत्र’ या अन्य यंत्र पहले स्थापित किया जाता है, जिससे वहां ब्रह्मांडीय ऊर्जा प्रवाहित होती है।

मूर्तियाँ सिर्फ कला नहीं, ऊर्जा संचयन का माध्यम हैं

मंदिरों में रखी जाने वाली मूर्तियाँ विशिष्ट धातुओं या पत्थरों से बनाई जाती हैं जिनमें ऊर्जा अवशोषित और प्रसारित करने की क्षमता होती है।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद, इन विग्रहों पर अभिषेक, मंत्र और पूजन से वे ऊर्जा को अपने अंदर स्थिर कर भक्तों तक पहुँचाते हैं।

अन्य धर्मों में पूजन स्थल क्या कहलाते हैं?

धर्म पूजन स्थल
हिंदू मंदिर
इस्लाम मस्जिद
ईसाई चर्च
बौद्ध विहार/मठ
जैन जिनालय
सिख गुरुद्वारा
यहूदी सिनागॉग
पारसी अगियारी
बहाई Bahá’í House of Worship
शिंतो जिनजा
कन्फ्यूशियन मंदिर ऑफ कन्फ्यूशियस

प्राचीन मंदिर: समाज, शिक्षा और विज्ञान के केंद्र

पुराने समय में मंदिरों का कार्य केवल पूजा नहीं था। ये होते थे:

  • शिक्षा और गुरुकुल केंद्र

  • खगोल विज्ञान का अध्ययन स्थल

  • समाज सेवा, चिकित्सा और कृषि ज्ञान के केंद्र

  • सामाजिक एकता के प्रतीक — त्योहारों और विवाहों के आयोजन स्थल

मंदिर केवल धर्म का स्थल नहीं, ऊर्जा और चेतना का केंद्र हैं

मंदिर एक ऐसा स्थान है जहाँ आत्मा, ब्रह्मांडीय ऊर्जा और ईश्वर का साक्षात्कार होता है।
यह श्रद्धा, विज्ञान, वास्तु और भक्ति का दिव्य संगम है।

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