रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

नारद जी और हनुमान जी का प्रसंग

यह कहानी भगवान श्रीहरि और उनके अनन्य भक्तों नारद मुनि और हनुमान जी के बीच के संवाद को दर्शाती है। यह कथा इस बात पर प्रकाश डालती है कि भगवान भक्तों की सच्ची भक्ति को किस प्रकार देखते और उसका आदर करते हैं। नारद जी के अभिमान को तोड़ते हुए प्रभु यह संदेश देते हैं कि सच्चे भक्त वही हैं जो स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर देते हैं।

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नारद जी प्रायः प्रभु से मिलने जाया करते थें| एक बार नारदजी ने देखा कि द्वार पर हनुमान जी पहरा दे रहे है।

नारद जी को देख कर हनुमान जी ने पूछा: नारद मुनि ! कहाँ जा रहे हो?

नारदजी बोले: मैं प्रभु से मिलने आया हूँ। नारदजी ने हनुमानजी से पूछा प्रभु इस समय क्या कर रहे है?

हनुमानजी बोले: पता नहीं पर कुछ बही खाते का काम कर रहे हैं। प्रभु बही खाते में कुछ लिख रहे है।

नारदजी ने आश्चर्य से पूछा: अच्छा क्या लिखा पढ़ी कर रहे है?

हनुमानजी बोले: मुझे पता नही, मुनिवर आप खुद ही देख आना।

नारद मुनि प्रभु के पास गए और देखा कि प्रभु कुछ लिख रहे है।

नारद जी बोले: प्रभु आप बही खाते का काम कर रहे है? ये काम तो किसी मुनीम को दे दीजिए।

प्रभु बोले: नही नारद, मेरा काम मुझे ही करना पड़ता है। ये काम मैं किसी और को नही सौंप सकता।

नारद जी: अच्छा प्रभु ऐसा क्या काम है? ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिख रहे हो?

प्रभु बोले: तुम क्या करोगे देखकर, जाने दो।

नारद जी बोले: नही प्रभु बताईये ऐसा आप इस बही खाते में क्या लिखते है?

प्रभु बोले: नारद इस बही खाते में उन भक्तों के नाम है जो मुझे हर पल भजते हैं। मैं उनकी नित्य हाजरी लगाता हूँ ।

नारद जी: अच्छा प्रभु जरा बताईये तो मेरा नाम कहाँ पर है? नारदमुनि ने बही खाते को खोल कर देखा तो उनका नाम सबसे ऊपर था। नारद जी को गर्व हो गया कि देखो मुझे मेरे प्रभु सबसे ज्यादा भक्त मानते है। पर नारद जी ने देखा कि हनुमान जी का नाम उस बही खाते में कहीं नही है ? नारद जी सोचने लगे कि हनुमान जी तो प्रभु श्रीराम जी के खास भक्त है, फिर उनका नाम इस बही खाते में क्यों नही है? क्या प्रभु उनको भूल गए है?

नारद मुनि हनुमान जी के पास आये और बोले: हनुमान! प्रभु के बही खाते में उन सब भक्तो के नाम है जो नित्य प्रभु को भजते हैं पर आप का नाम उस में कहीं नही है।

हनुमानजी ने कहा कि: मुनिवर! होगा, आप ने शायद ठीक से नही देखा होगा।

नारदजी बोले: नहीं नहीं मैंने ध्यान से देखा पर आप का नाम कहीं नही था।

हनुमानजी ने कहा: अच्छा कोई बात नही। शायद प्रभु ने मुझे इस लायक नही समझा होगा, जो मेरा नाम उस बही खाते में लिखा जाये।
पर नारद जी, प्रभु के पास एक छोटी पुस्तिका भी है, उसमें भी वे नित्य कुछ लिखते है।

नारदजी बोले:अच्छा?

हनुमानजी ने कहा: हाँ !

नारदमुनि फिर प्रभु के पास गये और बोले प्रभु! सुना है कि आप अपने पास एक छोटी पुस्तिका भी रखते है! उसमे आप क्या लिखते है?

प्रभु बोले: हाँ! पर वो तुम्हारे काम की नही है।

नारदजी: प्रभु! बताईये ना, मैं देखना चाहता हूँ कि आप उसमें क्या लिखते हैं।

प्रभु मुस्कुराये और बोले मुनिवर मैं इन में उन भक्तों के नाम लिखता हूँ, जिनको मैं नित्य भजता हूँ।

नारदजी ने पुस्तिका खोल कर देखा तो उसमें सबसे ऊपर हनुमान जी का नाम था। ये देख कर नारदजी का अभिमान टूट गया।

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