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श्री वाल्मीकि रामायण: सम्पूर्ण उत्तरकाण्ड

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उत्तरकाण्ड वाल्मीकि द्वारा रचित प्रसिद्ध हिन्दू ग्रंथ रामायण‘ और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस‘ का एक भाग (काण्ड या सोपान) है।

उत्तरकाण्ड सर्ग तथा श्लोक

उत्तरकाण्ड में राम के राज्याभिषेक के अनन्तर कौशिकादि महर्षियों का आगमनमहर्षियों के द्वारा राम को रावण के पितामहपिता तथा रावण का जन्मादि वृत्तान्त सुनानासुमाली तथा माल्यवान के वृत्तान्तरावणकुम्भकर्णविभीषण आदि का जन्म-वर्णनरावणादि सभी भाइयों को ब्रह्मा से वरदान-प्राप्तिरावण-पराक्रम-वर्णन के प्रसंग में कुबेरादि देवताओं का घर्षणरावण सम्बन्धित अनेक कथाएँसीता के पूर्वजन्म रूप वेदवती का वृत्तान्तवेदवती का रावण को शापसहस्त्रबाहु अर्जुन के द्वारा नर्मदा अवरोध तथा रावण का बन्धनरावण का बालि से युद्ध और बालि की काँख में रावण का बन्धनसीता-परित्यागसीता का वाल्मीकि आश्रम में निवासनिमिनहुषययाति के चरितशत्रुघ्न द्वारा लवणासुर वधशंबूक वध तथा ब्राह्मण पुत्र को जीवन प्राप्तिभार्गव चरितवृत्रासुर वध प्रसंगकिंपुरुषोत्पत्ति कथाराम का अश्वमेध यज्ञवाल्मीकि के साथ राम के पुत्र लव कुश का रामायण गाते हुए अश्वमेध यज्ञ में प्रवेशराम की आज्ञा से वाल्मीकि के साथ आयी सीता का राम से मिलनसीता का रसातल में प्रवेशभरतलक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के पुत्रों का पराक्रम वर्णनदुर्वासा-राम संवादराम का सशरीर स्वर्गगमनराम के भ्राताओं का स्वर्गगमनतथा देवताओं का राम का पूजन विशेष आदि वर्णित है।

उत्तरकाण्ड में 111 सर्ग तथा 3,432 श्लोक प्राप्त होते हैं। बृहद्धर्मपुराण के अनुसार इस काण्ड का पाठ आनन्दात्मक कार्योंयात्रा आदि में किया जाता है-

उत्तरकाण्ड संक्षिप्त कथा

नारद जी कहते हैं- जब रघुनाथ जी अयोध्या के राजसिंहासन पर आसीन हो गयेतब अगस्त्य आदि महर्षि उनका दर्शन करने के लिये गये। वहाँ उनका भली-भाँति स्वागत-सत्कार हुआ। तदनन्तर उन ऋषियों ने कहा- “भगवन! आप धन्य हैंजो लंका में विजयी हुए और इन्द्रजित जैसे राक्षस को मार गिराया। अब हम उनकी उत्पत्ति कथा बतलाते हैंसुनिये-

ब्रह्मा के पुत्र मुनिवर पुलस्त्य हुए और पुलस्त्य से महर्षि विश्रवा का जन्म हुआ। उनकी दो पत्नियाँ थीं- पुण्योत्कटा और कैकसी। उनमें पुण्योत्कटा ज्येष्ठ थी। उसके गर्भ से धनाध्यक्ष कुबेर का जन्म हुआ। कैकसी के गर्भ से पहले रावण का जन्म हुआजिसके दस मुख और बीस भुजाएँ थीं। रावण ने तपस्या की और ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दियाजिससे उसने समस्त देवताओं को जीत लिया। कैकसी के दूसरे पुत्र का नाम कुम्भकर्ण और तीसरे का विभीषण था। कुम्भकर्ण सदा नींद में ही पड़ा रहता थाकिंतु विभीषण बड़े धर्मात्मा हुए। इन तीनों की बहन शूर्पणखा हुई। रावण से मेघनाद का जन्म हुआ। उसने इन्द्र को जीत लिया थाइसलिये इन्द्रजित‘ के नाम से उसकी प्रसिद्ध हुई। वह रावण से भी अधिक बलवान था। परंतु देवताओं आदि के कल्याण की इच्छा रखने वाले आपने लक्ष्मण के द्वारा उसका वध करा दिया।” ऐसा कहकर वे अगस्त्य आदि ब्रह्मर्षि श्रीरघुनाथ जी के द्वारा अभिनन्दित हो अपने-अपने आश्रम को चले गये।

मथुरा नगरी की स्थापना

देवताओं की प्रार्थना से प्रभावित श्रीरामचन्द्र जी के आदेश से शत्रुघ्न ने लवणासुर को मार कर एक पुरी बसायीजो मथुरा‘ नाम से प्रसिद्ध हुई। तत्पश्चात भरत ने श्रीराम की आज्ञा पाकर सिन्धु-तीर-निवासी शैलूष नामक बलोन्मत्त गन्धर्व का तथा उसके तीन करोड़ वंशजों का अपने तीखे बाणों से संहार किया। फिर उस देश के (गान्धार और मद्र) दो विभाग करकेउनमें अपने पुत्र तक्ष और पुष्कर को स्थापित कर दिया।

श्रीराम का परमधाम गमन

इसके बाद भरत और शत्रुघ्न अयोध्या में चले आये और वहाँ श्रीरघुनाथ जी की आराधना करते हुए रहने लगे। श्रीरामचन्द्र जी ने दुष्ट पुरुषों का युद्ध में संहार किया और शिष्ट पुरुषों का दान आदि के द्वारा भली-भाँति पालन किया। उन्होंने लोकापवाद के भय से अपनी धर्मपत्नी सीता को वन में छोड़ दिया था। वहाँ वाल्मीकि मुनि के आश्रम में उनके गर्भ से दो श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न हुएजिनके नाम कुश और लव थे। उनके उत्तम चरित्रों को सुनकर श्रीरामचन्द्र जी को भली-भाँति निश्चय हो गया कि ये मेरे ही पुत्र हैं। तत्पश्चात उन दोनों को कोसल के दो राज्यों पर अभिषिक्त करके, “मैं ब्रह्म हूँ” इसकी भावनापूर्वक प्रार्थना से भाइयों और पुरवासियों सहित अपने परमधाम में प्रवेश किया। अयोध्या में ग्यारह हज़ार वर्षों तक राज्य करके वे अनेक यज्ञों का अनुष्ठान कर चुके थे। उनके बाद सीता के पुत्र कोसल जनपद के राजा हुए। अग्निदेव कहते हैं- “वसिष्ठ जी! देवर्षि नारद से यह कथा सुनकर महर्षि वाल्मीकि ने विस्तार पूर्वक रामायण‘ नामक महाकाव्य की रचना की। जो इस प्रसंग को सुनता हैवह स्वर्ग लोक को जाता है।


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