रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

श्रीमद वाल्मीकि रामायण: बालकाण्ड – सम्पूर्ण सर्गों की सूचि

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सर्ग 1: नारदजी का वाल्मीकि मुनि को संक्षेप से श्री राम-चरित्र सुनाना

सर्ग 2: रामायण काव्य का उपक्रम, तमसा के तट पर क्रौञ्च वध से संतप्त हुए महर्षि वाल्मीकि के शोक का श्लोक रूप में प्रकट होना तथा ब्रह्मा जी का उन्हें रामचरित्रमय काव्य के निर्माण का आदेश देना।

सर्ग 3: वाल्मीकि मुनि के द्वारा रामायण-काव्य में निबद्ध विषयों का संक्षेप से उल्लेख करना ।

सर्ग 4: महर्षि वाल्मीकि का चौबीस हजार श्लोकों से युक्त रामायण काव्य का निर्माण करके उसे लव-कुश को पढ़ाना, मुनि मण्डली में रामायण गान करके लव और कुशका प्रशंसित होना तथा अयोध्या में श्रीराम द्वारा सम्मानित हो उन दोनों का रामदरबार में रामायण-गान सुनाना।

सर्ग 5: राजा दशरथद्वारा सुरक्षित अयोध्यापुरीका वर्णन

सर्ग 6: राजा दशरथके शासनकालमें अयोध्या और वहाँके नागरिकोंकी उत्तम स्थितिका वर्णन

सर्ग 7: राजमन्त्रियोंके गुण और नीतिका वर्णन

सर्ग 8: राजाका पुत्रके लिये अश्वमेधयज्ञ करनेका प्रस्ताव और मन्त्रियों तथा ब्राह्मणोंद्वारा उनका अनुमोदन

सर्ग 9: सुमन्त्रका राजाको ऋष्यश्रृङ्ग मुनिको बुलानेकी सलाह देते हुए उनके अङ्गदेशमें जाने और शान्तासे विवाह करनेका प्रसङ्ग सुनाना

सर्ग 10: अङ्गदेशमें ऋष्यश्रृङ्गके आने तथा शान्ताके साथ विवाह होनेके प्रसङ्गका कुछ विस्तारके साथ वर्णन

सर्ग 11: सुमन्त्रके कहनेसे राजा दशरथका सपरिवार अङ्गराजके यहाँ जाकर वहाँसे शान्ता और ऋष्यश्रृङ्गको अपने घर ले आना

सर्ग 12: राजाका ऋषियोंसे यज्ञ करानेके लिये प्रस्ताव, ऋषियोंका राजाको और राजाका मन्त्रियोंको यज्ञकी आवश्यक तैयारी करनेके लिये आदेश देना

सर्ग 13: राजाका वसिष्ठजीसे यज्ञकी तैयारीके लिये अनुरोध, वसिष्ठजीद्वारा इसके लिये सेवकोंकी नियुक्ति और सुमन्त्रको राजाओंको बुलानेके लिये आदेश, समागत राजाओंका सत्कार तथा पत्नियों-सहित राजा दशरथका यज्ञकी दीक्षा लेना

सर्ग 14: महाराज दशरथके द्वारा अश्वमेध यज्ञका साङ्गोपाङ्ग अनुष्ठान

सर्ग 15: ऋष्यश्रृङ्गद्वारा राजा दशरथके पुत्रेष्टि यज्ञका आरम्भ, देवताओंकी प्रार्थनासे ब्रह्माजीका रावणके वधका उपाय ढूँढ़ निकालना तथा भगवान् विष्णुका देवताओंको आश्वासन देना

सर्ग 16: देवताओंका श्रीहरिसे रावणवधके लिये मनुष्यरूपमें अवतीर्ण होनेको कहना, राजाके पुत्रेष्टि यज्ञमें अग्निकुण्डसे प्राजापत्य पुरुषका प्रकट होकर खीर अर्पण करना और उसे खाकर रानियोंका गर्भवती होना

सर्ग 17: ब्रह्माजीकी प्रेरणासे देवता आदिके द्वारा विभिन्न वानरयूथपतियोंकी उत्पत्ति

सर्ग 18: राजाओं तथा ऋष्यश्रृङ्गको विदा करके राजा दशरथका रानियोंसहित पुरीमें आगमन, श्रीराम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्नके जन्म, संस्कार, शील-स्वभाव एवं सद्गुण, राजाके दरबारमें विश्वामित्रका आगमन और उनका सत्कार

सर्ग 19: विश्वामित्रके मुखसे श्रीरामको साथ ले जानेकी माँग सुनकर राजा दशरथका दु:खित एवं मूर्च्छित होना

सर्ग 20: राजा दशरथका विश्वामित्रको अपना पुत्र देनेसे इनकार करना और विश्वामित्रका कुपित होना

सर्ग 21: विश्वामित्रके रोषपूर्ण वचन तथा वसिष्ठका राजा दशरथको समझाना

सर्ग 22: राजा दशरथका स्वस्तिवाचनपूर्वक राम-लक्ष्मणको मुनिके साथ भेजना, मार्गमें उन्हें विश्वामित्रसे बला और अतिबला नामक विद्याकी प्राप्ति

सर्ग 23: विश्वामित्रसहित श्रीराम और लक्ष्मणका सरयू-गङ्गा-संगमके समीप पुण्य आश्रममें रातको ठहरना

सर्ग 24: श्रीराम और लक्ष्मणका गङ्गापार होते समय विश्वामित्रजीसे जलमें उठती हुर्इ तुमुलध्वनिके विषयमें प्रश्न करना, विश्वामित्रजीका उन्हें इसका कारण बताना तथा मलद, करूष एवं ताटका वनका परिचय देते हुए इन्हें ताटकावधके लिये आज्ञा प्रदान करना

सर्ग 25: श्रीरामके पूछनेपर विश्वामित्रजीका उनसे ताटकाकी उत्पत्ति, विवाह एवं शाप आदिका प्रसङ्ग सुनाकर उन्हें ताटकावधके लिये प्रेरित करना

सर्ग 26: श्रीरामद्वारा ताटकाका वध

सर्ग 27: विश्वामित्रद्वारा श्रीरामको दिव्यास्त्र-दान

सर्ग 28: विश्वामित्रका श्रीरामको अस्त्रोंकी संहारविधि बताना तथा उन्हें अन्यान्य अस्त्रोंका उपदेश करना, श्रीरामका एक आश्रम एवं यज्ञस्थानके विषयमें मुनिसे प्रश्न

सर्ग 29: विश्वामित्रजीका श्रीरामसे सिद्धाश्रमका पूर्ववृत्तान्त बताना और उन दोनों भाइयोंके साथ अपने आश्रमपर पहुँचकर पूजित होना

सर्ग 30: श्रीरामद्वारा विश्वामित्रके यज्ञकी रक्षा तथा राक्षसोंका संहार

सर्ग 31: श्रीराम, लक्ष्मण तथा ऋषियोंसहित विश्वामित्रका मिथिलाको प्रस्थान तथा मार्गमें संध्याके समय शोणभद्रतटपर विश्राम

सर्ग 32: ब्रह्मपुत्र कुशके चार पुत्रोंका वर्णन, शोणभद्र-तटवर्ती प्रदेशको वसुकी भूमि बताना, कुशनाभकी सौ कन्याओंका वायुके कोपसे ‘कुब्जा’ होना

सर्ग 33: राजा कुशनाभद्वारा कन्याओंके धैर्य एवं क्षमाशीलताकी प्रशंसा, ब्रह्मदत्तकी उत्पत्ति तथा उनके साथ कुशनाभकी कन्याओंका विवाह

सर्ग 34: गाधिकी उत्पत्ति, कौशिकीकी प्रशंसा, विश्वामित्रजीका कथा बंद करके आधी रातका वर्णन करते हुए सबको सोनेकी आज्ञा देकर शयन करना

सर्ग 35: शोणभद्र पार करके विश्वामित्र आदिका गङ्गाजीके तटपर पहुँचकर वहाँ रात्रिवास करना तथा श्रीरामके पूछनेपर विश्वामित्रजीका उन्हें गङ्गाजीकी उत्पत्तिकी कथा सुनाना

सर्ग 36: देवताओंका शिव-पार्वतीको सुरतक्रीडासे निवृत्त करना तथा उमादेवीका देवताओं और पृथ्वीको शाप देना

सर्ग 37: गङ्गासे कार्तिकेयकी उत्पत्तिका प्रसङ्ग

सर्ग 38: राजा सगरके पुत्रोंकी उत्पत्ति तथा यज्ञकी तैयारी

सर्ग 39: इन्द्रके द्वारा राजा सगरके यज्ञसम्बन्धी अश्वका अपहरण, सगरपुत्रोंद्वारा सारी पृथ्वीका भेदन तथा देवताओंका ब्रह्माजीको यह सब समाचार बताना

सर्ग 40: सगरपुत्रोंके भावी विनाशकी सूचना देकर ब्रह्माजीका देवताओंको शान्त करना, सगरके पुत्रोंका पृथ्वीको खोदते हुए कपिलजीके पास पहुँचना और उनके रोषसे जलकर भस्म होना

सर्ग 41: सगरकी आज्ञासे अंशुमान्का रसातलमें जाकर घोड़ेको ले आना और अपने चाचाओंके निधनका समाचार सुनाना

सर्ग 42: अंशुमान् और भगीरथकी तपस्या, ब्रह्माजीका भगीरथको अभीष्ट वर देकर गङ्गाजीको धारण करनेके लिये भगवान् शंकरको राजी करनेके निमित्त प्रयत्न करनेकी सलाह देना

सर्ग 43: भगीरथकी तपस्यासे संतुष्ट हुए भगवान् शंकरका गङ्गाको अपने सिरपर धारण करके बिन्दुसरोवरमें छोड़ना और उनका सात धाराओंमें विभक्त हो भगीरथके साथ जाकर उनके पितरोंका उद्धार करना

सर्ग 44: ब्रह्माजीका भगीरथकी प्रशंसा करते हुए उन्हें गङ्गाजलसे पितरोंके तर्पणकी आज्ञा देना और राजाका वह सब करके अपने नगरको जाना, गङ्गावतरणके उपाख्यानकी महिमा

सर्ग 45: देवताओं और दैत्योंद्वारा क्षीर-समुद्र-मन्थन, भगवान् रुद्रद्वारा हालाहल विषका पान, सर्ग विषय पृष्ठ-संख्या सर्ग विषय पृष्ठ-संख्या (१०) भगवान् विष्णुके सहयोगसे मन्दराचलका पातालसे उद्धार और उसके द्वारा मन्थन, धन्वन्तरि, अप्सरा, वारुणी, उच्चै:श्रवा, कौस्तुभ तथा अमृतकी उत्पत्ति और देवासुर-संग्राममें दैत्योंका संहार

सर्ग 46: पुत्रवधसे दु:खी दितिका कश्यपजीसे इन्द्रहन्ता पुत्रकी प्राप्तिके उद्देश्यसे तपके लिये आज्ञा लेकर कुशप्लवमें तप करना, इन्द्रद्वारा उनकी परिचर्या तथा उन्हें अपवित्र अवस्थामें पाकर इन्द्रका उनके गर्भके सात टुकड़े कर डालना

सर्ग 47: दितिका अपने पुत्रोंको मरुद्गण बनाकर देवलोकमें रखनेके लिये इन्द्रसे अनुरोध, इन्द्रद्वारा उसकी स्वीकृति, दितिके तपोवनमें ही इक्ष्वाकु-पुत्र विशालद्वारा विशाला नगरीका निर्माण तथा वहाँके तत्कालीन राजा सुमतिद्वारा विश्वामित्र मुनिका सत्कार

सर्ग 48: राजा सुमतिसे सत्कृत हो एक रात विशालामें रहकर मुनियोंसहित श्रीरामका मिथिलापुरीमें पहुँचना और वहाँ सूने आश्रमके विषयमें पूछनेपर विश्वामित्रजीका उनसे अहल्याको शाप प्राप्त होनेकी कथा सुनाना

सर्ग 49: पितृदेवताओंद्वारा इन्द्रको भेड़ेके अण्डकोषसे युक्त करना तथा भगवान् श्रीरामके द्वारा अहल्याका उद्धार एवं उन दोनों दम्पतिके द्वारा इनका सत्कार

सर्ग 50: श्रीराम आदिका मिथिला-गमन, राजा जनकद्वारा विश्वामित्रका सत्कार तथा उनका श्रीराम और लक्ष्मणके विषयमें जिज्ञासा करना एवं परिचय पाना

सर्ग 51: शतानन्दके पूछनेपर विश्वामित्रका उन्हें श्रीरामके द्वारा अहल्याके उद्धारका समाचार बताना तथा शतानन्दद्वारा श्रीरामका अभिनन्दन करते हुए विश्वामित्रजीके पूर्वचरित्रका वर्णन

सर्ग 52: महर्षि वसिष्ठद्वारा विश्वामित्रका सत्कार और कामधेनुको अभीष्ट वस्तुओंकी सृष्टि करनेका आदेश

सर्ग 53: कामधेनु की सहायतासे उत्तम अन्न-पानद्वारा सेनासहित तृप्त हुए विश्वामित्रका वसिष्ठसे उनकी कामधेनुको माँगना और उनका देनेसे अस्वीकार करना

सर्ग 54: विश्वामित्रका वसिष्ठजीकी गौको बलपूर्वक ले जाना, गौका दु:खी होकर वसिष्ठजीसे इसका कारण पूछना और उनकी आज्ञासे शक, यवन, पह्लव आदि वीरोंकी सृष्टि करके उनके द्वारा विश्वामित्रजीकी सेनाका संहार करना

सर्ग 55: अपने सौ पुत्रों और सारी सेनाके नष्ट हो जानेपर विश्वामित्रका तपस्या करके महादेवजीसे दिव्यास्त्र पाना तथा उनका वसिष्ठके आश्रमपर प्रयोग करना एवं वसिष्ठजीका ब्रह्मदण्ड लेकर उनके सामने खड़ा होना

सर्ग 56: विश्वामित्रद्वारा वसिष्ठजीपर नाना प्रकारके दिव्यास्त्रोंका प्रयोग और वसिष्ठद्वारा ब्रह्मदण्डसे ही उनका शमन एवं विश्वामित्रका ब्राह्मणत्वकी प्राप्तिके लिये तप करनेका निश्चय

सर्ग 57: विश्वामित्र की तपस्या, राजा त्रिशङ्कुका अपना यज्ञ करानेके लिये पहले वसिष्ठजीसे प्रार्थना करना और उनके इनकार कर देनेपर उन्हींके पुत्रोंकी शरणमें जाना

सर्ग 58: वसिष्ठ ऋषिके पुत्रोंका त्रिशङ्कुको डाँट बताकर घर लौटनेके लिये आज्ञा देना तथा उन्हें दूसरा पुरोहित बनानेके लिये उद्यत देख शाप-प्रदान और उनके शापसे चाण्डाल हुए त्रिशङ्कुका विश्वामित्रजीकी शरणमें जाना

सर्ग 59: विश्वामित्रका त्रिशङ्कुको आश्वासन देकर उनका यज्ञ करानेके लिये ऋषि-मुनियोंको आमन्त्रित करना और उनकी बात न माननेवाले महोदय तथा ऋषिपुत्रोंको शाप देकर नष्ट करना

सर्ग 60: विश्वामित्रका ऋषियोंसे त्रिशङ्कुका यज्ञ करानेके लिये अनुरोध, ऋषियोंद्वारा यज्ञका आरम्भ, त्रिशङ्कुका सशरीर स्वर्गगमन, इन्द्रद्वारा स्वर्गसे उनके गिराये जानेपर क्षुब्ध हुए विश्वामित्रका नूतन देव सर्गके लिये उद्योग, फिर देवताओंके अनुरोधसे उनका इस
कार्यसे विरत होना

सर्ग 61: विश्वामित्रकी पुष्करतीर्थमें तपस्या तथा राजर्षि अम्बरीषका ऋचीकके मध्यम पुत्र शुन:शेपको यज्ञ-पशु बनानेके लिये खरीदकर लाना

सर्ग 62: विश्वामित्र द्वारा शुन:शेपकी रक्षाका सफल प्रयत्न और तपस्या

सर्ग 63: विश्वामित्रको ऋषि एवं महर्षिपदकी प्राप्ति, मेनकाद्वारा उनका तपोभङ्ग तथा ब्रह्मर्षिपदकी प्राप्तिके लिये उनकी घोर तपस्या

सर्ग 64: विश्वामित्रका रम्भाको शाप देकर पुन: घोर तपस्याके लिये दीक्षा लेना

सर्ग 65: विश्वामित्रकी घोर तपस्या, उन्हें ब्राह्मणत्वकी प्राप्ति तथा राजा जनकका उनकी प्रशंसा करके उनसे विदा ले राजभवनको लौटना

सर्ग 66: राजा जनकका विश्वामित्र और राम-लक्ष्मणका सत्कार करके उन्हें अपने यहाँ रखे हुए धनुषका परिचय देना और धनुष चढ़ा देनेपर श्रीरामके साथ उनके ब्याहका निश्चय प्रकट करना

सर्ग 67: श्री राम के द्वारा धनुर्भङ्ग तथा राजा जनक का विश्वामित्रकी आज्ञासे राजा दशरथको बुलानेके लिये मन्त्रियोंको भेजना

सर्ग 68: राजा जनकका संदेश पाकर मन्त्रियोंसहित महाराज दशरथका मिथिला जानेके लिये उद्यत होना

सर्ग 69: दल-बलसहित राजा दशरथकी मिथिलायात्रा और वहाँ राजा जनकके द्वारा उनका स्वागत-सत्कार

सर्ग 70: राजा जनकका अपने भाई कुशध्वजको सांकाश्या नगरीसे बुलवाना, राजा दशरथके अनुरोधसे वसिष्ठजीका सूर्यवंशका परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मण के लिये सीता तथा ऊर्मिलाको वरण करना

सर्ग 71: राजा जनकका अपने कुलका परिचय देते हुए श्रीराम और लक्ष्मणके लिये क्रमश: सीता और ऊर्मिलाको देनेकी प्रतिज्ञा करना

सर्ग 72: विश्वामित्रद्वारा भरत और शत्रुघ्नके लिये कुशध्वजकी कन्याओंका वरण, राजा जनकद्वारा इसकी स्वीकृति तथा राजा दशरथका अपने पुत्रोंके मङ्गलके लिये नान्दीश्राद्ध एवं गोदान करना

सर्ग 73: श्रीराम आदि चारों भाइयोंका विवाह

सर्ग 74: विश्वामित्रका अपने आश्रमको प्रस्थान, राजा जनकका कन्याओंको भारी दहेज देकर राजा दशरथ आदिको विदा करना, मार्गमें शुभाशुभ शकुन और परशुरामजीका आगमन

सर्ग 75: राजा दशरथकी बात अनसुनी करके परशुरामका श्रीरामको वैष्णव-धनुषपर बाण चढ़ानेके लिये ललकारना

सर्ग 76: श्रीराम का वैष्णव-धनुषको चढ़ाकर अमोघ बाणके द्वारा परशुरामके तप:प्राप्त पुण्यलोकोंका नाश करना तथा परशुरामका महेन्द्रपर्वतको लौट जाना

सर्ग 77: राजा दशरथ का पुत्रों और वधुओंके साथ अयोध्यामें प्रवेश, शत्रुघ्न सहित भरत का मामा के यहाँ जाना, श्रीराम के बर्ताव से सबका संतोष तथा सीता और श्रीरामका पारस्परिक प्रेम

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