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भगवान कृष्ण के कुछ रोचक तथ्य

वैसे तो श्री कृष्ण के बारे में जानने को पूरा जन्म भी काम है लेकिन उनकी कथा को पढ़ने सुनने से भी अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है।

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श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार और हिन्दू धर्म के ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता हैं। भगवान् विष्णु के सभी अवतारों में श्रीकृष्ण की ख्याति सबसे ज्यादा है। वैसे तो श्री कृष्ण के बारे में जानने को पूरा जन्म भी काम है लेकिन उनकी कथा को पढ़ने सुनने से भी अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है।

आज हम जानेंगे उनके बारे में कुछ रोचक तथ्य

१. श्रीकृष्ण जी की आयु

श्रीकृष्ण के जन्म के समय और उनकी आयु के विषय में पुराणों व आधुनिक विद्वानों में मतभेद हैं। हालाँकि महाभारत के समय उनकी आयु ७२ वर्ष बताई गयी है। महाभारत के पश्चात पांडवों ने ३६ वर्ष शासन किया और श्रीकृष्ण की मृत्यु के तुरंत बाद ही उन्होंने भी अपने शरीर का त्याग कर दिया। इस गणना से श्रीकृष्ण की आयु उनकी मृत्यु के समय लगभग १०८ वर्ष थी। ये संख्या हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र मानी जाती है। यही नहीं, परगमन के समय ना श्रीकृष्ण का एक भी बाल श्वेत था और ना ही शरीर पर कोई झुर्री थी।

२. भगवान विष्णु के अवतार

भगवान विष्णु ने भगवान शिव से उनका बाल रूप देखने का अनुरोध किया और उनकी इच्छा पूरी करने के लिए भगवान शिव ने बालक के रूप में गृहपति अवतार लिया। गृहपति भगवान शंकर के सातवें अवतार हैं । उसके बाद भगवान शिव ने भी भगवान विष्णु के बाल रूप को देखने की इच्छा जताई। पहले अयोध्या में श्रीराम के और फिर गोकुल में श्रीकृष्ण अवतार के बाल रूप को देखने के लिए स्वयं भगवान शिव वेश बदल कर पृथ्वी पर आये। श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों के आराध्य देव भगवान शिव ही थे।

krishna as Vishnu

 

३. श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग

श्रीकृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल (काला) था। मेघश्यामल का मतलब हुआ मेघ की तरह काला। मतलब उनका रंग न तो काला और न ही नीला था। यह भी कि उनका रंग काला मिश्रित नीला भी नहीं था। उनकी त्वचा का रंग श्याम रंग भी नहीं था। दरअसल उनकी त्वचा का रंग मेघ श्यामल था। अर्थात काला, नीला और सफेद मिश्रित रंग।

Lord Krishna

४. श्रीकृष्ण की गंध

उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी। इस वजह से कई बार वेष बदलने के बाद भी कृष्ण पहचाने जाते थे। कई ग्रंथों के अनुसार कृष्ण के शरीर से गोपिकाचंदन और और रातरानी की मिलीजुली खुशबू आती थी। कुछ लोग इसे अष्टगंध भी कहते है |

ठीक ऐसी ही खूबियाँ द्रौपदी में भी थीं इसीलिये अज्ञातवास में उन्होंने सैरंध्री का कार्य चुना ताकि चंदन, उबटन आदि में उनकी गंध छुपी रहे। पाण्डवों की दादी सत्यवती के शरीर से भी ऐसी ही मादक गंध आती थी जो उन्हें महर्षि पराशर के आशीर्वाद से प्राप्त हुई थी।

Lord Krishna

५. श्रीकृष्ण के शरीर का रहस्य

कहते हैं कि कृष्ण अपनी देह को अपने हिसाब से ढ़ाल लेते थे। कभी उनका शरीर स्त्रियों जैसा सुकोमल हो जाता था तो कभी अत्यंत कठोर। युद्ध के समय उनका शरीर वज्र की तरह कठोर हो जाता था। ऐसा इसलिए हो जाता था क्योंकि वे योग और कलारिपट्टू विद्या में पारंगत थे।

६. श्रीकृष्ण की बहनें

श्री कृष्ण की दो बहनें थे, सुभद्रा एवं एकानंगा। एकानंगा यशोदा और नन्द की पुत्री थीं। कही-कहीं उन्हें ही विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजा जाता है। श्रीकृष्ण की बहन सुभुद्रा वास्तव में उनकी सौतेली एवं बलराम की सहोदर बहन थ। सुभद्रा रोहिणी की पुत्री थीं। सुभद्रा का जन्म वसुदेव के कंस के कारागार से मुक्त होने के कई वर्ष बाद हुआ था।

Krishan, Subhadra & Balram

 

७. श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा 

श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद और जनश्रुतियों में रहा है। राधा श्रीकृष्ण से ७ वर्ष बडी थीं और कृष्ण के गोकुल से चले जाने के बाद उनका विवाह रायण या अय्यन नाम के गोप से हुआ था। इसके पश्चात केवल एक बार ही राधा श्रीकृष्ण से द्वारका में आकर मिली थी।

श्रीकृष्ण अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी द्वारिका में ६ महीने से ज्यादा नहीं रहे। १६ वर्ष की आयु में गोकुल को छोड़ने के बाद श्रीकृष्ण कभी भी वापस नहीं गए। वे दुबारा अपने पालक नन्द, यशोदा और अपनी बहन एकनंगा से नहीं मिले। हालाँकि उन्होंने एक बार उद्धव को वहाँ भेजा था जिसे लोगो ने श्रीकृष्ण ही समझ लिया क्यूंकि उद्धव की काया भी श्रीकृष्ण से बहुत मिलती थी। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम अपने जीवन में केवल एक बार गोकुल गए थे।

Krisha & Radha

८. श्रीकृष्ण एवं भगवान विष्णु

केवल श्रीकृष्ण को ही भगवान विष्णु का परमावतार और उनके सर्वाधिक समकक्ष माना जाता है क्यूंकि वे नारायण के १६ कलाओं से युक्त थे। उन्होंने अपने गुरु संदीपनी के आश्रम में केवल ६४ दिनों में ६४ विद्याओं का ज्ञान अर्जित कर लिया था।

कहा जाता है कि श्रीराम भगवान विष्णु के १२ गुणों के साथ अवतरित हुए इसीलिए उनमें मानवीय गुण अधिक था और उन्हें पुरुषोत्तम कहा गया किन्तु श्रीकृष्ण भगवान नारायण के सभी १६ गुणों के साथ जन्में जिस कारण उन्हें परमावतार कहा गया। यही कारण है कि जहाँ श्रीराम को सभी दिव्यास्त्र तपस्या अथवा गुरु से प्राप्त करने पड़े वहीँ श्रीकृष्ण को वो स्वतः ही मिल गए।
“कलारीपट्टु” का प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है और इसी कारण द्वारका की “नारायणी सेना” आर्यावर्त की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गयी थी।

९. भगवान विष्णु और भगवान शिव का का धनुष

श्राङ्ग भगवान विष्णु का धनुष था और पिनाक भगवान शिव का और दोनों का निर्माण विश्वकर्मा ने साथ साथ किया। एक बार ब्रम्हा जी ने जानना चाहा कि दोनों में से कौन सा धनुष श्रेष्ठ है। इसके लिए भगवान् विष्णु और भगवान् शिव में अपने अपने धनुष से युद्ध हुआ। युद्ध इतना विनाशकारी था कि स्वयं ब्रम्हा जी ने प्रार्थना कर युद्ध को रुकवाया नहीं तो समस्त सृष्टि का नाश हो जाता। बाद में शिवजी के पूछने पर ब्रम्हा जी ने श्राङ्ग को पिनाक से श्रेष्ठ बता दिया क्यूंकि युद्ध के बीच में भगवान् शिव श्राङ्ग का सौंदर्य देखने के लिए एक क्षण के लिए स्तंभित हो गए थे। इससे रुष्ट होकर महादेव ने पिनाक धनुष को जनक के पूर्वज देवरात को दे दिया और साथ ही ये भी कहा कि अब इस धनुष का विनाश भी विष्णु ही करेंगे। बाद में भगवान् विष्णु ने श्रीराम का अवतार ले उस धनुष को भंग किया। महाभारत में श्राङ्ग को श्रीकृष्ण के अतिरिक्त केवल परशुराम, भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं अर्जुन ही संभाल सकते थे।

Rama-breaks-bow-of-Shiva

१०. श्रीकृष्ण एवं सुदर्शन चक्र

कृष्ण का प्रमुख अस्त्र सुदर्शन चक्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध था। जब सारे ओर दैत्यों का आतंक बढ़ गया और भगवान विष्णु उन्हें अपने साधारण अस्त्रों से नहीं मार पाए तब उन्होंने भगवान शिव की १००० वर्षों तक तपस्या की। जब रूद्र ने उनसे वरदान मांगने को बोला तो उन्होंने कहा कि उन्हें एक ऐसा दिव्यास्त्र चाहिए जिससे वे राक्षसों का नाश कर सकें। इसपर भगवान् शिव ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से सुदर्शन चक्र को उत्पन्न किया जिसमे १०८ आरे थे और इसे नारायण को दिया जिससे उन्होंने सभी राक्षसों का नाश किया। ये चक्र उन्होंने परशुराम को दिया और फिर परशुराम से इसे श्रीकृष्ण को प्राप्त हुआ। ये इतना शक्तिशाली था कि त्रिदेवों के महास्त्र (ब्रम्हास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र) के अतिरिक्त केवल इंद्र का वज्र और रूद्र का त्रिशूल ही इसके सामने टिक सकता था। महाभारत में कृष्ण के अतिरिक्त केवल परशुराम ही इसे धारण कर सकते थे।

krishan Sudarshan Chakra

११. श्रीकृष्ण के युद्ध

श्रीकृष्ण ने कई युद्ध लड़े किन्तु महाभारत के अतिरिक्त जो अन्य महा भयंकर युद्ध थे वो उन्होंने जरासंध, कालयवन, नरकासुर, पौंड्रक, शाल्व और बाणासुर के विरुद्ध लड़ा। कंस, चाणूर और मुष्टिक जैसे विश्वप्रसिद्ध मल्लों का वध भी उन्होंने केवल १६ वर्ष की आयु में कर दिया था।

बाणासुर के विरूद्ध तो उन्हें स्वयं भगवान शिव से युद्ध लड़ना पड़ा और भगवान रूद्र के कारण ही बाणासुर के प्राण बच पाए।

१२. श्रीकृष्ण और ५६ भोग

गोकुल में इंद्र के प्रकोप से लोगों को बचाने के लिए उन्होंने अपनी कनिष्ठा अँगुली पर गोवर्धन को पूरे सात दिनों तक उठाये रखा। श्रीकृष्ण हर प्रहर अर्थात दिन में ८ बार भोजन करते थे। जब गोकुल वासियों ने देखा कि उनके कारण कृष्ण ७ दिनों से भूखे हैं तो गोवर्धन की पुनः स्थापना के बाद उन्होंने श्रीकृष्ण के ८ बार के हिसाब से ५६ तरह के पकवान बना कर खिलाये। तभी से श्रीकृष्ण को ५६ भोग चढाने की परंपरा शुरू हुई।

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