रामायण, महाभारत, गीता, वेद तथा पुराण की कथाएं

जब एक अक्षर के कारन रावण की पराजय हो गयी

जब 'ह ' के बदले 'क' ने रावण का सर्वनाश करा दिया

नवरात्रि की शुरुआत की कुछ कथाओं में से एक ये हैं की सबसे पहले भगवान राम ने शरद ऋतू नवरात्रि की पूजा लंका में विजय प्राप्त करने के लिए की थी भगवान राम ने नौ दिनों तक उपासना करने के बाद दसवें दिन लंका पर चढ़ाई करके विजय को प्राप्त किया था ।

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ये कथा है श्री हनुमान जी की चतुराई की। कैसे उनके एक अक्षर के हेर फेर के कारन रावण की पराजय हो गयी थी।

लंका के युद्ध में, ब्रह्माजी ने श्रीराम जी से रावण वध के लिए चंडी देवी का पूजन करने को कहा। देवी को प्रसन्न करने से तथा उनके वर को प्राप्त कर के ही रावण पर विजय प्राप्त किया जा सकता था । तत्काल ब्रह्मा जी बताये अनुसार चंडी पूजन की तैयारी की गयी। हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल के फूलों की व्यवस्था की गई थी ।

रावण इस हवन- पूजन में विघ्न डालना चाहता था। उसने अपनों मायावी शक्ति से पूजन सामग्री से एक नीलकमल के फूल को गायब कर दिया। अब १०७ फूलों से पूजन पूर्ण नहीं हो सकता था। राम जी का संकल्प टूटता जा रहा था । वर मिलना तो दूर अब तो भय इस बात का था कि देवी माँ कहीं रुष्ट न हो जाएँ। दुर्लभ नीलकमल के फूल की व्यवस्था भी तत्काल असंभव थी। तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन’ कहते हैं। मेरे नेत्र भी तो कमल के सामान ही तो हैं। तो क्यों न संकल्प पूर्ति हेतु अपना ही एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए।

प्रभु राम जैसे ही एक बाण से अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तभी देवी प्रकट हो गयी और देवी ने प्रसन्न हो कर राम जी को विजयश्री का आशीर्वाद दिया।

आशीर्वाद तो मिल गया लेकिन रावण की चालबाजी को देख कर हनुमान जी कुपित थें। उन्होंने रावण को सबक सिखाने  के लिए एक चाल चली।

रावण भी युद्ध में अपनी विजय के लिए माता चंडी दुर्गा का पाठ ब्राह्मणों से करवा रहा था। ब्राह्मणों के पाठ की तैयारी और उनकी सेवा के लिए कई लोग नियुक्त थे। हनुमान जी भी उन्हीं लोगों के बीच ब्राह्मण बालक के रूप में सम्मिलित हो गए तथा ब्राह्मणों की सेवा में जुट गए।

बालक हनुमान जी की निःस्वार्थ सेवा देखकर चण्‍डी पाठ करने वाले उन ब्राह्मणों ने प्रसन्न होकर हनुमान जी से वर मांगने को कहा। इस पर हनुमान ने नम्रतापूर्वक कहा:- प्रभु, यदि आप मेरी सेवा से प्रसन्न हैं तो आप जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका केवल एक अक्षर मेरे कहे अनुसार बदल दीजिए।

हनुमान जी स्‍वयं शास्‍त्रों के महान ज्ञाता हैं। उनके जैसा ज्ञानी अन्‍य कोई नहीं हैं, इसलिए हनुमान जी चण्‍डी पाठ के एक-एक मंत्र का गूढ़ अर्थ जानते थे, जबकि मंत्रों का इतना गहन ज्ञान उन ब्राह्मणों को भी नहीं था। सो वे ब्राह्मण, हनुमान जी के इस रहस्य को समझ न सके और जल्दबाजी में हनुमान जी की बात से सहमत हो गए । दरअसल, चण्‍डीपाठ में एक मंत्र के बीच में ‘भूर्तिहरिणी’ शब्द आता है। हनुमान जी ने भूर्तिहरिणी वाले मंत्र में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करने का निवेदन किया, जिसे उन ब्राह्मणों ने मान लिया था।

मन्त्र में भूर्तिहरिणी का अर्थ है दुःख हरने वाली और यानी ‘करिणी’ का मतलब होता है दुःख देनी वाली। एक अक्षर के बदलने की वजह से मन्त्र गलत हो गया और माँ चंडी क्रोधित हो गई और उन्होंने रावण को उसके सर्वनाश होने का श्राप दिया।

हनुमानजी महाराज ने श्लोक में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी।

नवरात्रि की शुरुआत की कुछ कथाओं में से एक ये हैं की सबसे पहले भगवान राम ने शरद ऋतू नवरात्रि की पूजा लंका में विजय प्राप्त करने के लिए की थी भगवान राम ने नौ दिनों तक उपासना करने के बाद दसवें दिन लंका पर चढ़ाई करके विजय को प्राप्त किया था।

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