हनुमान के पुत्र मकरध्वज का मंदिर, ग्वालियर
ग्वालियर का मकरध्वज मंदिर
यह प्राचीन मंदिर ग्वालियर के करहिया क्षेत्र के जंगलों में स्थित है जो प्राकृतिक गुफाओं से परिपूर्ण है। लोक मान्यता के अनुसार यहां वह गुफा भी है जो रामायण काल में राम और रावण में हुए युद्ध की गाथा सुनाती हैं। आज भी मंदिर परिसर में अनवरत जल की धारा बहती है जो एक कुंड में पहुंचती हैं। यहां प्राचीन सात मंजिला इमारत बनी हुई है जिसे सतखंडा नाम से जाना जाता है।
कुछ विद्वानों के अनुसार ये मंदिर शयद देश का इकलौता मकरध्वज मंदिर है। लेकिन मुझे मकरध्वज के अन्यत्र स्थित मंदिरों के भी बारे में जानकारी मिली है ।
यह प्राचीन मंदिर ग्वालियर के करहिया क्षेत्र के जंगलों में स्थित है जो प्राकृतिक गुफाओं से परिपूर्ण है। लोक मान्यता के अनुसार यहां वह गुफा भी है जो रामायण काल में राम और रावण में हुए युद्ध की गाथा सुनाती हैं। आज भी मंदिर परिसर में अनवरत जल की धारा बहती है जो एक कुंड में पहुंचती हैं। यहां प्राचीन सात मंजिला इमारत बनी हुई है जिसे सतखंडा नाम से जाना जाता है।
जितना प्राचीन मकरध्वज मंदिर है उतना ही पुराना इसी परिसर में स्थित सतखंडा महल बताया जाता है। मान्यता के मुताबिक इस मंदिर को एक ही रात में पाताल लोक के द्वारपाल मकरध्वज द्वारा बनवाया गया था। लोक मान्यता है कि अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया था। उसका रास्ता इसी गुफा से होकर जाता है। इसके द्वार पर अहिरावण द्वारा तैनात द्वारपाल मकरध्वज की बंधी मूर्ति है।
यह लगभग 500 फुट की ऊंचाई पर पहाड़ के बीचो-बीच एक विशाल गुफा है जिसमें एक बाबा निवास करते हैं। इस गुफा के आसपास ऐसी कई प्राचीन धरोहर देखी जा सकती हैं। मान्यता है कि इस पहाड़ों के बीच से निकलने वाली जलधारा जो एक गोमुख से निकलती है वो प्राकृतिक वनस्पतियों से होकर आती है। माना जाता है इस जल को पीने से बच्चों एवं वृद्धों के भीष्ण से भीष्ण रोग खत्म हो जाते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार जब लंका में माता सीता की खोज में गए हनुमान को मेघनाद ने बंदी बना लिया, तब उन्हें रावण के समक्ष लाया गया। रावण के आदेश से हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी गयी। इसी जलती हुई पूँछ से हनुमान ने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। तीव्र गर्मी से व्याकुल तथा पूँछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान समुद्र में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूँद जल में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई।
कुछ समय बाद पाताल के राजा और रावण के भाई अहिरावण के सिपाही समुद्र से उस मछली को पकड़ लाए। मछली का पेट काटने पर उसमें से एक मानव निकला जो वानर जैसा दिखता था। इसे ही मकरध्वज के नाम से जाना जाता है। अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल का द्वारपाल बना दिया। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था।
उधर लंका युद्घ के दौरान रावण के कहने पर अहिरावण राम और लक्ष्मण को चुराकर पाताल ले आया। हनुमान जी को इस बात की जानकारी मिली तब पाताल पहुंच गये।
यहां द्वार पर ही उनका सामना एक और महाबली वानर से हो गया। हनुमान जी ने उसका परिचय पूछा तो वानर रूपी मानव ने कहा कि वह पवनपुत्र हनुमान का बेटा मकरध्वज है।
हनुमान ने मकरध्वज को बताया कि उन्हें अहिरावण यानी उसके स्वामी की कैद से अपने राम और लक्ष्मण को मुक्त कराना है। लेकिन मकरध्वज ठहरा पक्का स्वामी भक्त। उसने कहा कि जिस प्रकार आप अपने स्वामी की सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वामी की सेवा में हूं, इसलिए आपको नगर में प्रवेश नहीं करने दूंगा।
हनुमान जी के काफी समझाने के बाद भी जब मकरध्वज नहीं माना तब हनुमान और मकरध्वज के बीच घमासान युद्घ हुआ। अंत में हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ में बांध लिया और नगर में प्रवेश कर गये। अहिरावण का संहार करके हनुमान जी ने मकरध्वज को भगवान राम से मिलवाया और भगवान राम ने मकरध्वज को पाताल का राजा बना दिया।
Temples dedicated to Makardhwaja can be found in India, especially in Gujarat, where Jethwas once ruled. Some noted temples in Gujarat are at
- Odadar village near Porbandar.
- Hanuman-Dandi at Bet Dwarka, where idols of Makardhwaja and Hanuman are worshiped together.
- Chinchawan, Tq. Wadwani Wadwani, Dist. Beed (Maharashtra)
- Karahiya near Gwalior, Madhya Pradesh
- Balaji Makardhwaja Temple at Beawar, Rajasthan –
which is dedicated to both father-son duo in form of Balaji Hanuman and Makardhwaja.
Ref: https://en.wikipedia.org/wiki/Makardhwaja
गुजरात के काठियावाड़ के जेठवा राजवंश के लोग आज भी अपने आप की मकरध्वज के वंशज मानते हैं और हनुमान जी की अपने इष्टदेवता के रूप में पूजा करते हैं।
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