बजरंगबली ब्रह्मचारी थें फिर भी एक पुत्र के पिता थें।
मकरध्वज के जन्म की कथा
बिना विवाह करे हुए वे पिता कैसे बने इसके पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। कुछ विद्वानों के अनुसार वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस, दोनों में मकरध्वज का कहीं उल्लेख नहीं है।
पवनपुत्र श्री हनुमान जी की लीला अपरंपार है। इन्होंने अपना सारा जीवन श्री राम के शरण में बिताया और उनकी सेवा को ही अपना धर्म समझा । उन्होंने अपना पूरा जीवन ब्रह्मचारी के रूप में बताया और कभी विवाह नहीं किया परंतु तब भी उनका एक पुत्र था जिसका नाम ” मकरध्वज ” था।
बिना विवाह करे हुए वे पिता कैसे बने इसके पीछे एक बहुत ही रोचक कथा है। कुछ विद्वानों के अनुसार वाल्मीकि रामायण और रामचरित मानस, दोनों में मकरध्वज का कहीं उल्लेख नहीं है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब लंका में माता सीता की खोज में गए हनुमान को मेघनाद ने बंदी बना लिया, तब उन्हें रावण के समक्ष लाया गया। रावण के आदेश से हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी गयी। इसी जलती हुई पूँछ से हनुमान ने सम्पूर्ण लंका नगरी को जला डाला। तीव्र गर्मी से व्याकुल तथा पूँछ की आग को शांत करने हेतु हनुमान समुद्र में कूद पड़े, तभी उनके पसीने की एक बूँद जल में टपक पड़ी। इस एक बून्द को एक मछली ने , कुछ कहानियों में मगरमच्छ का भी वर्णन है, ने पी लिया, जिससे वह गर्भवती हो गई।
कुछ समय बाद पाताल के राजा और रावण के भाई अहिरावण के सिपाही समुद्र से उस मछली को पकड़ लाए। मछली का पेट काटने पर उसमें से एक मानव निकला जो वानर जैसा दिखता था। इसे ही मकरध्वज के नाम से जाना जाता है। अहिरावण ने मकरध्वज को पाताल का द्वारपाल बना दिया। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था।
उधर लंका युद्घ के दौरान रावण के कहने पर अहिरावण राम और लक्ष्मण को चुराकर पाताल ले आया। हनुमान जी को इस बात की जानकारी मिली तब पाताल पहुंच गये।
यहां द्वार पर ही उनका सामना एक और महाबली वानर से हो गया। हनुमान जी ने उसका परिचय पूछा तो वानर रूपी मानव ने कहा कि वह पवनपुत्र हनुमान का बेटा मकरध्वज है। अब हनुमान जी और ज्यादा अचंभित हो गए। वो बोले कि मैं ही हनुमान हूं लेकिन मैं तो बालब्रह्मचारी हूं। तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो।
हनुमान जी की जिज्ञासा शांत करते हुए मकरध्वज ने उन्हें पसीने की बूंद और मछली से अपने उत्पन्न होने की कथा सुनाई। कथा सुनकर हनुमान जी ने स्वीकार कर लिया कि मकरध्वज उनका ही पुत्र है।
हनुमान ने मकरध्वज को बताया कि उन्हें अहिरावण यानी उसके स्वामी की कैद से अपने राम और लक्ष्मण को मुक्त कराना है। लेकिन मकरध्वज ठहरा पक्का स्वामी भक्त। उसने कहा कि जिस प्रकार आप अपने स्वामी की सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वामी की सेवा में हूं, इसलिए आपको नगर में प्रवेश नहीं करने दूंगा।
हनुमान जी के काफी समझाने के बाद भी जब मकरध्वज नहीं माना तब हनुमान और मकरध्वज के बीच घमासान युद्घ हुआ। अंत में हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ में बांध लिया और नगर में प्रवेश कर गये। अहिरावण का संहार करके हनुमान जी ने मकरध्वज को भगवान राम से मिलवाया और भगवान राम ने मकरध्वज को पाताल का राजा बना दिया।
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