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गरुड़ भगवान् विष्णु के वाहन कैसे बने?

तो इसलिए गरुड़ ने छीना अमृत कलश

ये कथा है पक्षी राज गरुड़ की। उनका जन्म कैसे हुआ ? उन्होंने देवताओं से अमृत कलश क्यों छीना? फिर भी इन्द्र उनके मित्र क्यों बन गए ? वे विष्णु जी के वाहन कैसे बने ? 

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पुराणों के अनुसार प्रजापति दक्ष परमपिता ब्रह्मा के पुत्र थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थीं- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की 24 कन्याएं थीं और वीरणी से 60 कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थीं। समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई। सभी की अलग-अलग कहानियां हैं।

कश्यप ऋषि ने प्रजापति दक्ष की तरह कन्याओं से विवाह किया था। देव, असुर तथा अनेक पशु उनकी ही संताने हैं। एक दिन उन्होंने अपनी दो पत्नियों, विनता और कद्रु से प्रसन्न हो कर कहा की वे एक यज्ञ करने जा रहे हैं। इसके पश्चात तुम दोनों को मनचाहे सन्तानो की प्राप्ति होगी।

कद्रु ने कहा की मुझे एक हजार शक्तिशाली पुत्र चाहिए। विनता ने अपने लिए मात्र दो, लेकिन कद्रु के पुत्रो से बलशाली पुत्रो की इच्छा
जताई। यज्ञ प्रारम्भ हो गया।

देवराज इन्द्र भी कश्यप ऋषि के ही पुत्र थें। यज्ञ में हाथ बटाने को वे भी आये। यज्ञ के पश्चात विनता ने दो और कद्रु ने एक हज़ार अंडे दिए। दोनों बहनो ने अपने अपने अंडो की खूब देखभाल की। कई वर्ष बीत गए। दोनों अपने बच्चो के आने की राह देख रहीं थीं। एक दिन – कद्रु के अंडे फूटने लगे। कद्रु ख़ुशी से चिल्ला पड़ी की देखो देखो मेरे बच्चे निकल आये। कद्रु के अंडो से एक हज़ार नाग निकल आये।

Garuda & Lord Vishnu

विनता को चिंता हुयी की मेरे अंडे क्यों नहीं फूटे। कहीं उसके बच्चों को कोई मदद तो नहीं चाहिए। वह अधीर हो उठी। उसने एक अंडा फोड़ कर देखा। उस अंडे में बच्चा अभी पूरा निर्मित नहीं हुआ था। लेकिन अब क्या हो सकता था ।  बालक ने विनता से कहा की तुम्हे अपनी अधीरता का फल भोगना पड़ेगा। तुम्हे दासी का जीवन व्यतीत करना पड़ेगा। लेकिन तुम दूसरे अंडे के प्रति धीरज रखना। समय पर उसमे से मेरा भाई जन्म लेगा और वही तुम्हे दासता से मुक्ति दिलाएगा। ये कह कर बच्चा आकाश की ओर उड़ चला। ये बच्चा की बाद में सूर्य का सारथि अरुण बना।

एक दिन दोनों बहनो में किसी बात को लेकर कोई शर्त लगी। तय यह हुआ की जो हारेगा वह दूसरे की दासी बनकर रहेगी। कद्रु को चिंता हुयी की कहीं वह शर्त हार न जाए। उसने अपने नाग पुत्रो को बुलाकर एक चाल चली और वह शर्त जीत गयी। अब विनता को कद्रु की दासी बन कर रहना था। विनता के पुत्र की बात सच हो रही थी।

कुछ दिन पस्चात विनता का दूसरा अंडा भी फूटा और उसमे से एक बालक का जन्म हुआ। उसका शरीर तो मानव का था लेकिन सर चील जैसा था। जब कश्यप ऋषि यज्ञ कर रहे थें तभी ऋषि मुनियों ने उसे आशीर्वाद दिया था की विनता का पुत्र बहुत ही बलशाली होगा और उसमे आकार बड़ा – छोटा करने की शक्ति होगी। वस्तुतः वह पक्षियों का इन्द्र होगा।

उस बच्चे को देखकर विनता बहुत ही प्रसन्न हुयी। अपनी माँ को दासी रूप में देख कर विनता का पुत्र बड़ा ही क्रोधित होता। अब हमेशा कद्रु के नाग पुत्रो के बीच तथा विनता के पुत्र के बीच झगड़ा होता रहता। विनता का पुत्र बलशाली तो था लेकिन उसकी माता दासी थी तो उसे भी झुकना पड़ता। एक दिन वह नागों के पास पहुंचा। उसने कहा की उसे किसी भी कीमत पर स्वाधीनता चाहिए। नाग बड़े चतुर थें। नागों ने कहा की यदि वह अमृत ला आकर दे देगा तो वे उसे मुक्त कर देंगे।

विनता ने ये बात सुनी तो उसने आशीर्वाद दे कर अपने पुत्र को विदा किया। अब विनता के पुत्र ने अपना आकार बढ़ाया ओर देवलोक की ओर उड़ चला। रास्ते में उसके पिता कश्यप ऋषि मिले। आगे बढ़ने पर कुछ ऋषि मिले जो पेड़ से उलटे लटक कर तपस्या कर रहे थें। उन ऋषियों ने ही विनता पुत्र का नाम गरुड़ रखा।

उधर देवलोक में ये बात फ़ैल गयी थी की कश्यप ऋषि और विनता का अजेय पुत्र, पक्षी राज गरुड़ अमृत को लेने देव लोक आ रहा है। देवो ने अमृत के चारो ओर घेरेबंदी कर दी। गरुड़ के आने पर उनके पंखो की फड़फड़ाहट से उडी धुल से आसमान ढक गय। अब युद्ध छिड़ गया।

गरुड़ सब देवताओं पर भरी पड़ रहे थें। अंततः गरुड़ ने सब को हरा कर धराशायी कर दिया ओर उन्होंने अमृत का घड़ा उठाया और घर की और उड़ चले।

भगवान् विष्णु ये सब देख रहे थें। उन्होंने देखा की गरुड़ के हाथ में अमृत घट है लेकिन उसने अमृत को हाथ नहीं लगाया। जबकि अमृत के लोभ से तो देवता भी नहीं बच पाते। वे बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने गरुड़ से वर माँगने को कहा। गरुड़ ने कहा की प्रभु यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो मुझे अपने से ऊपर स्थान दीजिये और मैं अजर अमर हो जाऊ। विष्णु जी ने गरुड़ को मनचाहा वर प्रदान किया और उन्हें अपने ध्वज के ऊपर स्थान दिया और गरुड़ अमर हो गए। विष्णु जी ने गरुड़ को अपना वाहन बनाया।

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लेंकिन अभी कार्य बाकि था। अमृत को जा कर नागों को सौपना था। इन्द्र ने देखा की वे गरुड़ से तो जीत नहीं सकते तो उन्होंने गरुड़ से मित्रता की इच्छा जताई। इन्द्र ने कहा की तुम जिन्हे अमृत दोगे वो इसे पी कर अमर हो जाएंगे और हमारे दुश्मन बने रहेंगे। अतः इसे लौटा दो।
गरुड़ ने एक युक्ति निकाल। उन्होंने कहा की मैं अभी इसे नागों को देने जा रहा हूँ लेकिन उन्हें देने के पश्चात इसे वापस लेने में तुम्हारी सहायता करूँगा

इन्द्र बड़े ही प्रसन्न हुए। पक्षी राज गरुड़ ने उनसे वर माँगा की आज से सर्प मेरे भोजन हों।

गरुड़ नागों के पास पहुंचे। नागों ने अमृत लेकर विनताको दासता से मुक्त कर दिया। वे नित्य कर्म के लिए चल पड़े ताकि सुद्ध हो कर अमृत का पान कर सके। इसी बीच गरुड़ की सलाह के अनुसार इन्द्र आये और अमृत का कलश उठा कर उड़ चले।

ये थी कथा पक्षी राज गरुड़ की।

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